हर महीने आने वाली संकष्टी चतुर्थी पर गणेशजी की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इससे हर तरह की परेशानियां दूर होने लगती हैं। 7 जून को आषाढ़ महीने की पहली चतुर्थी रहेगी। कृष्ण पक्ष में होने से ये संकष्टी चौथ रहेगी। बुधवार का संयोग बनने से इस व्रत में गणेशजी की पूजा का शुभ और बढ़ जाएगा। इस दिन ब्रह्म और महालक्ष्मी योग बन भी बन रहा है। जिससे ये व्रत और खास हो जाएगा।
आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर गणेश जी के कृष्ण पिंगल रूप की पूजा करने का विधान है। यानी गहरे भूरे रंग के गणेशजी को इस दिन पूजा जाता है। मान्यता है कि इनकी पूजा से बीमारियों और परेशानियों से राहत मिलने लगती है।
मोदक और दूर्वा से पूजा करने का विधान
आषाढ़ महीने की चतुर्थी पर गणेशजी की विशेष पूजा होती है। इस दिन बारह नामों से गणेशजी की पूजा की जाती है। हर एक नाम बोलने के बाद दूर्वा चढ़ाएं। पूजा पूरी होने के बाद मोदक का भोग लगाएं।
पद्म पुराण: गणेशजी को मिला प्रथम पूज्य का वरदान
पद्म पुराण के मुताबिक इस तिथि पर कार्तिकेय के साथ पृथ्वी की परिक्रमा लगाने की प्रतिस्पर्धा में भगवान गणेश ने पृथ्वी की बजाय भगवान शिव-पार्वती की सात बार परिक्रमा की थी। तब शिवजी ने प्रसन्न होकर देवताओं में प्रमुख मानते हुए उनको प्रथम पूजा का अधिकार दिया था।
संकष्टी चतुर्थी और गणेश पूजा
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ है कठिन समय से मुक्ति पाना। इस दिन भक्त अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति जी की आराधना करते हैं। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना फलदायी होता है। इस दिन उपवास करने का और भी महत्व होता है।
भगवान गणेश को समर्पित इस व्रत में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं इसे संकट चौथ भी। इस दिन भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और लाभ प्राप्ति होती है।