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सावन शुरु होने से पहले जान लें... जलाभिषेक करने के नियम... फिर बरसेगी भोलेनाथ की कृपा

शिव का प्रिय महीना सावन को शुरु होने में अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है। 4 जुलाई से सावन का महीना शुरु हो जाएगा, इसके साथ ही शिवालयों में भोलेनाथ की भक्ति की धारा भी बहने लगेगी। हालांकि शिवालयों में वर्षभर शिवभक्तों की अविरल भक्ति धारा नजर आती है, पर सावन का महीना विशेष होता है। इस बार संयोग से सावन का अधिकमास भी पड़ रहा है, ऐसे में उत्साह भी दोगुना हो गया है।

आमतौर पर शिवभक्त भोलेनाथ को जल अर्पित करना ही जानते हैं। पर सही मायने में जलाभिषेक का अपना नियम है। भोलेनाथ केवल उस जल को ही स्वीकार करते हैं, जो नियम के मुताबिक उन्हें अर्पित किया जाता है। तो आज यहां पर उन नियमों की संक्षिप्त जानकारी से आपको अवगत करा रहे हैं, ताकि सावन के महीने में आपसे किसी तरह की चूक ना हो जाए

जल चढ़ाने का पात्र - शास्त्रों में बताया गया है कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए तांबे, कांसे या चांदी के पात्र सबसे अच्छा माना जाता है। वहीं दूध चढ़ाने के लिए पीतल या चांदी के बर्तन का प्रयोग करें।

सही दिशा - शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय साधक को उत्तर दिशा की ओर मुख करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिशा में मुख करके जलाभिषेक करने पर माता पार्वती और शिव जी दोनों का आशीर्वाद मिलता है।

कैसे चढ़ाएं जल - भोलेनाथ को जल अर्पित करते समय जल की एक पतली धारा बनाकर मंत्र जाप करते हुए जल चढ़ाएं। शिवलिंग पर कभी खड़े होकर जल नहीं चढ़ाना चाहिए, इसे भोलेनाथ स्वीकार नहीं करते हैं। बैठकर और शांत मन से जलाभिषेक करें।

शंख का ना करें उपयोग - शिव शंभू की पूजा में शंख वर्जित है, ऐसे में शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए शंख का इस्तेमाल न करें। शिवपुराण के अनुसार, शिवजी ने शंखचूड़ नाम के दैत्य का वध किया था। ऐसा माना जाता है कि शंख उसी दैत्य की हड्डियों से बने होते हैं। इसलिए शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए।