किसान का बेटा हमेशा सत्य के प्रति समर्पित रहेगा : उपराष्ट्रपति
लुटेरे और आक्रमणकारी आए, हमारे संस्थानों को बेतहाशा नष्ट किया, इसके बाद भी हम संभल जाते हैं, उभर आते हैं: उपराष्ट्रपति
जो शोध ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए, वह वह शोध नहीं है जिसकी देश को जरूरत है; शोध अमूर्त नहीं हो सकता: उपराष्ट्रपति
कृषि क्षेत्र के लिए कोई कमी नहीं, किसान के लिए कोई कमी नहीं, यही हमारा आदर्श वाक्य होना चाहिए: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने कहा, विकसित भारत का रास्ता गांवों से होकर गुजरता है
उपराष्ट्रपति ने कहा-हमारे देश में कुछ लोग इस बात पर संदेह कर रहे हैं कि यह सदी भारत की है
स्टार्टअप्स को गांवों तक पहुंचना चाहिए: उपराष्ट्रपति
नई दिल्ली | उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय कृषि-खाद्य एवं जैव विनिर्माण संस्थान (एनएबीआई) में उन्नत उद्यमिता एवं कौशल विकास कार्यक्रम (ए-ईएसडीपी) परिसर का उद्घाटन किया।
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा, "मैं एक किसान का बेटा हूँ। किसान का बेटा हमेशा सत्य के प्रति समर्पित रहता है... उन्होंने आगे कहा, "भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है और ग्रामीण व्यवस्था देश की रीढ़ की हड्डी है। विकसित भारत का रास्ता गांवों से होकर गुजरता है। विकसित भारत अब केवल एक सपना नहीं है; यह हमारा लक्ष्य है।" उन्होंने कृषि से अपने गहरे जुड़ाव पर जोर दिया।
मोहाली के राष्ट्रीय कृषि-खाद्य और जैव विनिर्माण संस्थान (एनएबीआई) में उन्नत उद्यमिता और कौशल विकास कार्यक्रम (ए-ईएसडीपी) परिसर के उद्घाटन के अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा- “यदि हम अपने गौरवशाली इतिहास को देखें, तो भारत को ज्ञान और बुद्धि की भूमि के रूप में जाना जाता था। विशेष रूप से विज्ञान, खगोल विज्ञान और बहुत कुछ में। मानव जीवन के हर पहलू को हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों में प्रतिबिंबित किया गया है। हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो नालंदा, तक्षशिला और इस तरह के प्राचीन संस्थानों पर गर्व करता है। हमारे यहां 11वीं या 12वीं शताब्दी के आसपास बहुत कुछ नष्ट कर दिया गया। लुटेरे आए, आक्रमणकारी आए और वे हमारी संस्थाओं को नष्ट करने में बुरी तरह मुब्तिला रहे। नष्ट किए जाने वाली संस्थाओं में, नालंदा एक था। हमारे सांस्कृतिक केंद्र, हमारे धार्मिक केंद्रों पर बहुत अलग तरह के प्रतिशोधी, विकृत होने की हद तक चले गए। उन्होंने अपने खुद के केंद्र बनाए। राष्ट्र ने इसका सामना किया। फिर ब्रिटिश शासन आया। व्यवस्थित रूप से, हमें ऐसे कानून मिले जो उनके अधीन थे। हमें ऐसी शिक्षा मिली जिसने हमारी शिक्षा को नष्ट कर दिया और हमारी प्रतिभा के पूर्ण दोहन का इकोसिस्टम नहीं बन पाया। उपराष्ट्रपति ने कहा, सबसे अच्छी बात यह है कि हम जल्दी से संभल जाते हैं और तेजी से उभर रहे हैं।"
शोध के महत्व पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया: “देश के सभी संस्थानों को लिटमस टेस्ट पास करना होगा। लिटमस टेस्ट यह है कि क्या प्रभाव पैदा हो रहा है? सकारात्मक अर्थों में, यह भूकंप की तरह होना चाहिए, जिसका प्रभाव महसूस किया जा सके। शोध के लिए शोध, स्वयं के लिए शोध, शेल्फ पर रखे जाने वाले शोध, व्यक्तिगत अलंकरण के रूप में सामने आने वाले शोध वह शोध नहीं है जिसकी राष्ट्र को आवश्यकता है। शोध सतही रूप से शोधपत्र देना नहीं है। शोध उस व्यक्ति को प्रभावित करने के लिए नहीं है जो विषय से अनभिज्ञ है। शोध उन लोगों को प्रभावित करने के लिए है जो विषय को उतना ही जानते हैं जितना आप जानते हैं या वैश्विक बेंचमार्क पर आपसे अधिक जानते हैं। और वह शोध केवल अमूर्त नहीं हो सकता। हम जो कर रहे हैं उस पर शोध का प्रभाव होना चाहिए। उन्होंने कहा- “मुझे यकीन है कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ आपके पास पर्याप्त गुंजाइश है।”
भारत की सभ्यतागत ताकत को दोहराते हुए उन्होंने कहा, "यह सदी भारत की है। इस पर हमारे देश के कुछ लोगों को छोड़कर किसी को संदेह नहीं है। एक भारतीय के रूप में मेरी उनसे अपील है: हमारे राष्ट्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत में विश्वास और इस विचारधारा को अपनाना कि कोई भी हित - व्यक्तिगत, राजनीतिक या अन्य - राष्ट्रीय हित से बड़ा नहीं है।"
धनखड़ ने कहा, "मैं देखता हूं कि कृषि उपज तब बेची जाती है जब यह किसानों का बाजार नहीं होता, यह खरीदारों का बाजार होता है। सरकार बड़े पैमाने पर गोदाम और सहकारी आंदोलन के जरिए स्टॉक को बनाए रखने की सुविधा प्रदान करती है। मैं आपको बता सकता हूं कि सरकार की कृषि नीतियां किसान की बहुत मदद कर रही हैं। किसान को इसके बारे में जानना होगा। आप एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि हम यह अनुमति नहीं दे सकते कि हमारे किसानों को सबसे अच्छे के अलावा कुछ भी मिले। कृषि क्षेत्र के लिए कोई छोटा बदलाव नहीं। किसान के लिए कोई छोटा बदलाव नहीं। यह हमारा आदर्श वाक्य होना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा- आपके जैसे संस्थानों का कृषि विज्ञान केंद्रों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के संस्थानों के साथ सीधा संपर्क होना चाहिए।
धनखड़ ने कृषि और डेयरी उत्पादों में मूल्य संवर्धन करने वाले सूक्ष्म उद्योगों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं के पुनरुद्धार का आह्वान किया, "गांव या गांवों के समूह में एक ऐसी व्यवस्था विकसित होनी चाहिए, जहां आपके खेत में सूक्ष्म उद्योग हों, जो कृषि उत्पादों में मूल्य संवर्धन करें, जो उत्पादित पशुधन, उत्पादित दूध में मूल्य संवर्धन करें। इससे एक स्थायी समाज विकसित करने में मदद मिलेगी और निश्चित रूप से पोषण संबंधी खाद्य मूल्य में वृद्धि होगी। हमें गांव के समूहों में आइसक्रीम, पनीर, मिठाई और इसी तरह की अन्य चीजें बनाने के लिए उद्यमशीलता कौशल रखने से कौन रोकता है? यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रोजगार पैदा होगा और ग्रामीण युवा संतुष्ट होंगे।"
उन्होंने सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करते हुए कहा, "छोटे-छोटे समूह बनाएं, अपने उत्पाद को अपनी पसंद की कीमत पर बेचें। आपको किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है। आपको अपनी अर्थव्यवस्था को बहुत ऊँचे स्तर पर बदलने के लिए बस अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानना होगा।"
इस अवसर पर प्रियांक भारती, आईएएस, प्रशासनिक सचिव, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण, पंजाब सरकार, प्रो. अश्विनी पारीक, कार्यकारी निदेशक, ब्रिक-एनएबीआई, एकता विश्नोई, आईआरएस, संयुक्त सचिव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।