छत्तीसगढ़

आरक्षण विधेयक मामले में राज्यपाल सचिवालय को हाईकोर्ट का नोटिस

रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा से पारित हुए आरक्षण विधेयक के मामले को चल रहा विवाद अब उच्च न्यायालय में पहुंच चुका है। हाईकोर्ट ने मामले को लेकर राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी कर 7 दिन के भीतर जवाब मांगा है। हाईकोर्ट की जस्टिस रजनी दुबे ने नोटिस जारी किया है।

आरक्षण मामले में सामाजिक कार्यकर्ता व एडवोकेट के साथ ही राज्य सरकार ने भी याचिका दायर की है, जिस पर सोमवार को शासन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने तर्क दिया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को सीधे तौर पर विधेयक को रोकने का कोई अधिकार नहीं है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने दो माह पहले विधानसभा के विशेष सत्र में राज्य में विभिन्न वर्गों के आरक्षण को बढ़ा दिया था। इसके बाद छत्तीसगढ़ में अजजा के लिए 32 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी, अजा के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 4 फीसदी आरक्षण कर दिया गया। इस विधेयक को राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया था। राज्यपाल अनुसूईया उइके ने इसे स्वीकृत करने से फिलहाल इनकार कर दिया है और अपने पास ही रखा है।

राज्यपाल के विधेयक स्वीकृत नहीं करने को लेकर एडवोकेट हिमांक सलूजा ने और राज्य शासन ने याचिका लगाई थी। राज्य शासन ने आरक्षण विधेयक बिल को राज्यपाल की ओर से रोकने को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। इसमें कहा गया है कि राज्यपाल को विधानसभा में पारित किसी भी बिल को रोकने का अधिकार राज्यपाल को नहीं है।

सोमवार को इन दोनों याचिकाओं पर हाईकोर्ट में प्रारंभिक सुनवाई हुई। शासन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट व पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने तर्क देते हुए कहा कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असमति दे सकते हैं। लेकिन, बिना किसी वजह के बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता।