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दाल की कीमतों के बाद... चावल के दाम भी बढ़ने के पूरे आसार... वक्त से पहले कर लें स्टॉक

एक तरफ सरकार जहां दालों के दामों (Prices of Pulses) को कंट्रोल करने में लगी है, वहीं अब चावल की बढ़ती कीमतों (Rice Prices) ने सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। मौजूद आंकड़ों के अनुसार चावल की औसत कीमत 3 जून को 40 रुपये प्रति किलो थी, जो पिछले साल की तुलना में करीब आठ फीसदी ज्यादा है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर मॉनसून सामान्य नहीं रहा, बुवाई में कमी हुई और अल नीनो का असर देखने को मिला तो चावल के थोक और रिटेल दामों में इजाफे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि, खाद्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सरकार खाद्य चीजों के दाम में गैर जरूरी तेजी को सहन नहीं करेगी। स्थिति के अनुसार कदम उठाए जाएंगे।

सबसे बड़ी चुनौती है कि मुफ्त में गरीबों को जो राशन दिया जा रहा है, उनके लिए चावल के स्टॉक का इंतजाम करना। साथ ही खुले मार्केट में चावल की सप्लाई को बढ़ाना ताकि कीमतें कंट्रोल में रहें। एक सरकारी अधिकारी का कहना है कि इस वक्त सरकारी स्टोरेज में करीब 80 मीट्रिक टन चावल है। यह फूड सब्सिडी के तहत चावल के वितरण के लिए काफी है। मगर यहां सवाल यह है कि फेस्टिव सीजन में अगर डिमांड बढ़ी, उत्पादन में गिरावट आई तो फिर सरकार क्या करेगी? कमोडिटी मार्केट के एक्सपर्ट एस. वासुदेवन का कहना है कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। उत्पादन के आंकड़े का इंतजार करना चाहिए। मगर इतना कहा जा सकता है कि अगर मॉनसून की चाल में गड़बड़ी हुई तो स्थिति से निपटना मुश्किल होगा।

सूत्रों का कहना है कि टूटे चावल के एक्सपोर्ट प्रतिबंधों को केंद्र सरकार फिलहाल खत्म करने के मूड में नहीं है। चावल के उत्पादन को लेकर सरकार काफी परेशान है। इस बार जो उत्पादन होगा, उसकी खपत देश में होनी है। ऐसे में अगर निर्यात खोल दिया तो इसका असर घरेलू सप्लाई पर पड़ सकता है। गौरतलब है कि भारत ने सितंबर 2022 में टूटे चावल के विदेशी एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी थी और कई दूसरे ग्रेड यानी दूसरे चावल के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगा दिया था। यह दोनों अभी तक जारी हैं। एक उच्चाधिकारी के अनुसार 20 फीसदी निर्यात शुल्क के बावजूद चावल का निर्यात धीमा नहीं हुआ है और इसलिए हम मानते हैं कि शुल्क को कम करने या समाप्त करने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसका मतलब है कि सरकार निर्यात के मोर्चे पर एक सीमित दायरे में ही कदम उठा सकती है। रही बात आयात की, इस मामले में भी सरकार एक सीमा से ज्यादा आयात को तरजीह नहीं दे सकती। 

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