वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन और नए दृष्टिकोण विकसित करने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना संहिता-2023 जारी
2023-06-18 02:08 PM
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नईदिल्ली। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन और नए दृष्टिकोण विकसित करने के लिए “राष्ट्रीय कार्य योजना संहिता-2023” जारी की है। राष्ट्रीय कार्य योजना संहिता-2023 का विमोचन चंद्र प्रकाश गोयल, आईएफएस, वन महानिदेशक और विशेष सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा किया गया। यह विमोचन भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) द्वारा देहरादून में 17 जून 2023 को आयोजित ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ के अवसर पर किया गया था।
भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जहां वन प्रबंधन की वैज्ञानिक व्यवस्था है। उक्त कार्य योजना मुख्य साधन है जिसके माध्यम से भारत में वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन किया जा रहा है। राष्ट्रीय कार्य योजना संहिता, जिसे पहली बार 2004 में और बाद में 2014 में दोबारा संशोधन के साथ अपनाया गया था, एकरूपता ला पाई और हमारे देश के विभिन्न वन प्रभागों के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए कार्य योजना तैयार करने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य किया।
भारत में वनों का प्रबंधन कई कारणों से किया जा रहा है जैसे पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखना, प्राकृतिक विरासत का संरक्षण करना, मिट्टी के कटाव की जाँच करना और जलग्रहण क्षेत्रों का अनाच्छादन करना, टीलों के विस्तार की जाँच करना, लोगों की भागीदारी के साथ वृक्षों और वन आवरण को बढ़ाना, वनों की उत्पादकता में वृद्धि करना आदि। भारत और दुनिया में वैज्ञानिक वन प्रबंधन लगातार नए दृष्टिकोण, नई तकनीकों और नवाचारों के साथ विकसित हो रहा है और वन प्रबंधन की अनिवार्यताओं तथा उन पर निर्भर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खुद को विकसित करना अनिवार्य हो गया है।
राष्ट्रीय कार्य योजना संहिता-2023 देश के विभिन्न वन प्रभागों के लिए कार्य योजना तैयार करने में राज्य के वन विभागों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करेगी। राष्ट्रीय कार्य योजना संहिता-2023 में वनों के सतत प्रबंधन के सिद्धांतों को शामिल करते हुए वन प्रबंधन योजना की अनिवार्यताओं के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें वन और वृक्षों के आवरण की सीमा और स्थिति शामिल है; वन्य जीवन, वन स्वास्थ्य और जीवन शक्ति सहित जैव विविधता का रखरखाव, संरक्षण और वृद्धि, मिट्टी तथा जल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन, वन संसाधन उत्पादकता में वृद्धि, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक लाभों का रखरखाव एवं वृद्धि तथा उचित नीति, कानूनी सहायता, और संस्थागत ढांचा प्रदान करना।