छत्तीसगढ़

विकलांगता में कागजी कार्रवाई के बजाए वास्तविक स्थिति की जांच की जानी चाहिएः हाईकोर्ट

रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में विकलांगता प्रमाण पत्र गलत होने के आधार पर शिक्षाकर्मी की नौकरी से सेवा समाप्त करने के मामले में याचिका दायर की गई। याचिका में याचिकाकर्ता में कोर्ट बताया कि उन्हें बिना अवसर दिए उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुडी के बेंच में हुई। सुनवाई करते हुए कहा कि विकलांगता यदि वास्तविक है तो दस्तावेजीकरण के बिना बनी रहती है। प्रमाण पत्र केवल सहायक साक्ष्य के रूप में काम करते है। कोर्ट ने सेवा समाप्त करने के आदेश को खारिज कर दिया है।

बता दें, याचिकाकर्ता रेखा पांडेय ने कोर्ट को अपनी याचिका में बताया कि 18 फरवरी 2009 को जांजगीर-चांपा जिला के बलौदा जनपद पंचायत में शिक्षाकर्मी वर्ग-3 के पद पर उनकी नियुक्ति हुई थी। मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने विकलांगता प्रमाण पत्र सत्यापन लंबित रहने तक अंतरिम आधार पर नियुक्ति दी थी।
जनदर्शन कार्यक्रम के दौरान मदन सिंह राणा ने उनके खिलाफ शिकायत की थी। शिकायत में उसने रेखा पर झूठे विकलांगता प्रमाण पत्र के आधार पद प्राप्त करने का आरोप लगाया था। शिकायत पर सीईओ जिला पंचायत ने प्रमाण पत्र को सत्यापन के लिए जिला अस्पताल जांजगीर-चांपा भेजा।
सत्यापन में मेडिकल बोर्ड जांजगीर चांपा ने प्रमाण पत्र में हस्ताक्षर का समर्थन नहीं किया। इस आधार पर सीईओ ने सेवा समाप्त कर दिया। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। उन्होंने कोर्ट यह भी बताया कि उसे शिकायत की कोई प्रति नहीं दी और न ही जांच के संबंध में जानकारी नहीं दी। इतना ही नहीं औपचारिक जांच भी नहीं कराई गई। उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जिसमें कहा गया था कि उसने जाली दस्तावेज के माध्यम से नौकरी हासिल की है।
कारण बताओ नोटिस का जवाब प्रस्तुत करते हुए याचिकाकर्ता ने बताया आंखों का बलौदा बाजार प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जांच किया गया था। वहां से जांजगीर अस्पताल रेफर किया गया। जहां पर गहन परीक्षण के बाद प्रमाण पत्र तैयार किया गया। प्रमाण पत्र में पंजीकरण संख्या की कमी क्लर्क की गलती के कारण हो सकती है। उन्होंने मेडिकल बोर्ड से सत्यापित प्रमाण पत्र प्राप्त करने समय दिए जाने की मांग की थी। लेकिन उन्हें बिना अवसर दिए सेवा समाप्त किया गया।