दिव्य महाराष्ट्र मंडल

संत ज्ञानेश्वर स्कूल में मनाया गया छेरछेरा.. बच्चों ने जाना अपने संस्कार और इसके महत्व को

रायपुर। छत्तीसगढ़ के तीज त्योहारों का अपने अलग ही महत्व है। खेती प्रधान इस राज्य में त्योहारों की सीधा केंद्र किसानों द्वारा खेतों में लगाई फसल से होता है। पौष माह की पुर्णिमा को छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसे दान का पर्व भी कहते है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। छेरछेरा पर्व में दान की गई वस्तुओं का उपयोग जनकल्याण के कार्यों में किया जाता है। 

यह पर्व किसानों की मेहनत और उनकी फसल की खुशियों का प्रतीक है। महाराष्ट्र मंडल द्वारा संचालित संत ज्ञानेश्वर विद्यालय में छेरछेरा पर्व सुबह की प्रार्थन सभा में मनाया गया। 

शिक्षिका आराधना लाल ने प्रार्थना सभा में बच्चों को छेरछेरा पर्व के महत्व और उसे मनाए जाने के काऱण के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि महादान और फसल उत्सव के रूप मनाया जाने वाला छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ के सामाजिक समरसता और समृद्ध दानशीलता का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।

स्कूल के उपप्राचार्य राहुल वोडीतेलवार ने बताया कि इस दिन बच्चे एकत्र होकर घर-घर जाकर दान मांगते हैं। बच्चे छत्तीसगढ़ी लोकगीत ‘छेर-छेरा, छेरी के छेरा छेर बरतनीन छेर-छेरा’ गाते गए सभी के घर जाते है और दान मांगते है। ग्रामीण क्षेत्रों में धान दान करने की परंपरा है। 

स्कूल के प्राचार्य मनीष गोवर्धन ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी, इसलिए लोग धान के साथ साग-भाजी, फल का दान भी करते हैं। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नाम से जैसे असम में बिहू, दक्षिण में पोंगल, उत्तर भारत में संक्रांति के रुप में मनाया जाता है।