दिव्य महाराष्ट्र मंडल

कम्युनिकेशन स्किल पर कार्यशाला... प्रा.अनिल श्रीराम काळेले बोले-समझ में आने वाली भाषा में करें कम्युनिकेट

रायपुर। आज के भागमभाग भरे जीवन में हर किसी के पास अच्छी कम्युनिकेशन स्किल होना बेहद जरूरी है। अगर यह आपके पास नहीं हैं, तो आप अन्य लोगों से पीछे रह जाएंगे। आपकी कम्युनिकेशन स्किल्स अच्छी है तो आप अपनी बातों को प्रभावी ढंग से कम्युनिकेट कर सकते हैं। आप चाहे जॉब करें या अपना खुद का व्यापार, हर जगह आपको कम्युनिकेशन स्किल की आवश्यकता पड़ती ही है। उक्त बातें महाराष्ट्र नाट्य मंडळ के डायरेक्टर अनिल श्रीराम काळेले ने संत ज्ञानेश्वर स्कूल में कम्युनिकेशन स्किल्स पर आयोजित कार्यक्रम में कही। 
 
काळेले ने स्कूल के नए शिक्षण सत्र के प्रारंभ से पहले शिक्षकों के लिए आयोजित कम्युनिकेशन स्किल्स प्रोग्राम में कहा कि विचार, भावना और ज्ञान का प्रदर्शन ही कम्युनिकेशन कहलाता है। आप किसी बात को कितने प्रभावी ढंग से कहते हैं, यह बेहद जरूरी होता है। इसके लिए सुर, रेंज और वैल्युम का सामंजस्य आवश्यक होता है। समझ में आने वाली भाषा में कम्युनिकेशन हो, यह सबसे ज्यादा जरूरी है। उन्होंने कहा कि बंगाली समझने और बोलने वालों से अगर आप बंगाली में ही कम्युनिकेट करेंगे, तो यह ज्यादा प्रभावी होगा। 
 
काळेले ने कहा कि कम्युनिकेशन को हिंदी में संचार या सम्प्रेक्षण कहते हैं। कम्युनिकेशन का अर्थ होता है विचार, भावना और ज्ञान की सूचनाओं का आदान-प्रदान। कम्युनिकेशन स्किल्स इंसान के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। कम्युनिकेशन का मतलब है आप अपनी बात को लोगों के सामने कितने प्रभावी रूप से सामने रखते हैं। 
 
उन्होंने कहा कि कम्युनिकेशन स्किल्स का तीन भागों में विभक्त किया गया है।  मौखिक संचार (वरबल कम्युनिकेशन स्किल्स ), लिखित संचार (रिटन कम्युनिकेशन स्किल्स) और अमौखिक संचार (नाॅन वरबल कम्युनिकेशन स्किल्स)। मौखिक संचार यानी वर्बल कम्युनिकेशन स्किल्स एक ऐसी संचार प्रणाली है जिसमें हम एक या एक से अधिक लोगों से बात करके संदेश का सम्प्रेक्षण करते हैं। मौखिक संचार सबसे महत्वपूर्ण संचार माना जाता है। क्लास रूम में बच्चों को पढ़ाने के समय इस स्किल्स का अच्छा होना बेहद जरूरी है। आपकी क्लास रुम में अगर 40 बच्चे हैं, तो अंतिम पंक्ति में बैठे बच्चे तक आपकी आवाज ठीक ढंग से पहुंचे और प्रारंभ की पंक्ति में बैठे बच्चे को यह अत्यधिक शोरयुक्त न लगे। इसके लिए बच्चों की स्ट्रैंथ के अनुसार सुर, रेंज और वैल्युम को संतुलित रखना बेहद आवश्यक है। 
 
उन्होंने कहा कि लिखित संचार का मतलब अपनी बात को लिखित रूप से समझाना आपके लिखने की कला व्यक्तित्व को प्रभावित कर सकती है। यह विज्ञापन सामग्री, प्रिंट मीडिया अन्य संस्थाओं से संचार के लिए जरूरी है। बोर्ड में लिखकर अगर आप बच्चों को कुछ समझा रहे हैं, तो आपकी लिखावट बहुत महत्व रखती है। वहीं अमौखिक संचार के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें आप अपनी बॉडी लैंग्वेज के द्वारा किसी से बातचीत करते हैं। उसे अपनी बॉडी लैंग्वेज से अपनी बात को मनवाना नॉन वर्बल कम्युनिकेशन स्किल्स कहलाता है। बॉडी लैंग्वेज से आपकी पर्सनैलिटी का अंदाजा लगाया जाता है। इसलिए क्लास रूम ही नहीं जीवन के हर क्षण में आपकी बॉडी लैंग्वेज अच्छा होना चाहिए।