दिव्य महाराष्ट्र मंडल

राजधानी में विघ्नहर्ता से मिलने मायके आईं महालक्ष्मी, ज्येष्ठा और कनिष्ठा

- राजधानी के महाराष्ट्रीयन परिवार में विराजीं मां महालक्ष्मी
रायपुर। राजधानी के महाराष्ट्रीय परिवारों में मंगलवार 10 सितंबर से महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना शुरू हुई। तीन दिन तक मराठी घरों में उत्सव मनाया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि महालक्ष्मी, ज्येष्ठा और कनिष्ठा साल में एक बार अपने मायके आती है। इस दौरान वे विघ्नहर्ता से मुलाकात भी करती है। 
आचार्य चेतन गोविंद दंडवते ने बताया महाराष्ट्रीय पंचाग के अनुसार भाद्रपद में ज्येष्ठ गौरी पूजा का विशेष महत्व है।  प्रथम दिन महालक्ष्मी का आह्वान कर बुलाया जाता है। ढोल ढमाके साथ जब महालक्ष्मी घर आती है तो पूरा घर महालक्ष्मी को दिखाया जाता है, पश्चात एक स्थान पर आसन दिया जाता है। आसन पर पूजा पाठ कर विराजित किया जाता है। महालक्ष्मी के दूसरे दिन महाप्रसादी का आयोजन रहता है। 11 सितंबर को महाप्रसादी का आयोजन हुआ। कल 12 सितंबर को हल्दी-कुंकू के बाद विसर्जन किया जाएगा। 
आचार्य दंडवते ने बताया कि यह तीन दिन का व्रत नक्षत्र प्रधान है। अनुराधा नक्षत्र पर आह्वान, ज्येष्ठा नक्षत्र में पूजन और महाप्रसादी तथा मूल नक्षत्र में विसर्जन किया जाता है। पूजा के पहले दिन मां महालक्ष्मी अपने दो रूपों ज्येष्ठा और कनिष्ठा के रुप में विराजित हुई। उनके एक पुत्र और पुत्री की भी प्रतिमा स्थापित की गई। पहले दिन मां के स्वागत के लिए घऱ के प्रवेश द्वार से पूजा कक्ष तक रंगोली से देवी मां के पद चिन्ह बनाए गए। जलाशयों से लाए गए कंकड़ों को भी देवी स्वरूप मानकर ‘खड़े ची महालक्ष्मी’ ऐसा कह स्थापित किया जाता है।  
 
16 श्रृंगार के साथ फूल मिठाई किया अर्पित
दोनों देवियों ज्येष्ठा और कनिष्ठा को 16 चक्र धागे से सूतिया जाता है। फिर देवियों और बच्चों का 16 प्रकार के आभूषण से श्रृंगार हुआ। 16 प्रकार के फूलों से पूजन किया गया। 16 प्रकार के पत्तियों का बंडल बनाकर पूजा में चढ़ाया गया। 16 प्रकार के फल, मिठाई, नमकीन, चटनियां, सब्जी आदि बनाकर उनका पूजन और भोग लगाया गया। 
 
प्रसाद में ज्वार की बनी हुई आंबील अनिवार्य
विधिवत स्थापना के बाद दूसरे दिन पूजा के बाद भोग और महाप्रसाद अर्पित किया गया। आचार्य दंडवते ने बताया कि गौरी महालक्ष्मी को 16 प्रकार की सब्जियों, मिष्ठान का भोग लगाया गया। प्रसाद में ज्वार की बनी हुई आंबील नामक पदार्थ अनिवार्य रुप से चढ़ाया गया। शाम को सुहागिन महिलाओं को बुलाकर हल्दी कुंकू हुआ। रायपुर निवासी परितोष डोनगांवकर, सुनील गनोदवाले, आस्था काले, रेणुका पुराणिक, विशाखा तोपखानेवाले, दिलीप लांबे सहित कई मराठी परिवारों यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।