मंगल दोष नहीं बल्कि विशिष्ट गुण... महाराष्ट्र मंडल में आयोजित मेडिकल कुंडली कार्यक्रम में हुआ शंकाओं का समाधान
2023-03-16 04:42 PM
191
रायपुर। महाराष्ट्र मंडल में आयोजित मेडिकल कुंडली कार्यक्रम में बड़ी तादाद में लोगों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और अपनी समस्याओं और शंकाओं का समाधान भी पाया। कार्यक्रम में डॉ. शिल्पा जोग और महाराष्ट्र मंडल के सचिव आचार्य चेतन दंडवते ने समस्याओं और भ्रम लेकर आए लोगों का मार्गदर्शन किया और उन परिवारों का आत्मविश्वास भी बढ़ाया।
डॉ. शिल्पा जोग ने कहा कि यदि आपको पत्रिका पर विश्वास हो, तो ही उसका परीक्षण कराएं, अनावश्यक उलझन में खुद को डालने के लिए जन्म पत्रिका का परीक्षण कराना ठीक नहीं होता। डॉ. जोग ने कहा कि विवाह के लिए जन्मतिथि, समय, स्थान की जांच अपने पारिवारिक आचार्य के माध्यम से कराना जरूरी है। वहीं डॉ. शिल्पा ने कहा कि पत्रिका के बजाय विवाह के लिए मेडिकल हिस्ट्री जांचना चाहिए। मेडिकल हिस्ट्री का मतलब बीपी, शुगर, हार्ट की बीमारियों की जांच नहीं बल्कि दिमाग से संबंधित मिर्गी जैसी बीमारियों की पड़ताल करना चाहिए।
डॉ. शिल्पा ने बताया कि पत्रिका में मंगल कोई दोष नहीं होता है, बल्कि विशेष गुण होता है। जो जातक मांगलिक होता है उसकी कार्यक्षमता ज्यादा और तीव्र होती है। यही वजह है कि उसके लिए जीवनसाथी भी मांगलिक तलाशा जाता है, ताकि दोनों की क्षमता और दक्षता आपस में बराबरी पर रहे, ताकि जीवन में तनाव की स्थिति न बने। उन्होंने यह भी बताया कि दोनों का मांगलिक होना जरूरी भी नहीं, बल्कि पत्रिका में यदि दूसरे ग्रह समावेशी भाव के होते हैं, तो जीवन पर दंपती को किसी तरह की परेशानी नहीं होती। डॉ. शिल्पा ने कहा कि किसी ने दत्तक पुत्र लिया है, तो उसकी जन्मतिथि, स्थान और समय ज्ञात नहीं होता। ऐसे में उसका विवाह जोड़ने के लिए कुंडली- पत्रिका देखने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने कहा कि वास्तव में कोई भी माता—पिता अपनी कन्या का दान नहीं करता, बल्कि अपनी कन्या को वैवाहिक संस्कार के माध्यम से दूसरे (पति के) गोत्र में प्रवेश कराता है।
मेडिकल कुंडली कार्यक्रम के अवसर पर मंडल के सचिव आचार्य चेतन दंडवते ने उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि पत्रिका में मंगल से व्यक्ति पर कोई असर नहीं होता। जन्म पत्रिका में मंगल का मतलब मंगल होता है और मंगल न तो सौम्य होता है और नहीं प्रबल। मंगल को राशियां और ग्रह प्रबल या सौम्य बनाते हैं।
आचार्य दंडवते ने कहा कि पत्रिका मिलाने के बजाय वर—वधू के स्वभाव का मिलान कराया जाना चाहिए। इसके अलावा जरूरी है कि वैवाहिक संस्कार से पूर्व परिवार, रहन—सहन, संस्कार और स्वभाव को मिलाया जाए। उन्होंने नाड़ी दोष को लेकर भी लोगों की शंकाओं का समाधान करते हुए कहा कि यह केवल उलझाने वाले विकार हैं, वास्तव में इन सबका जीवन पर खास प्रभाव नहीं पड़ता। सबसे बड़ी बात उन्होंने कही कि आपस में विचारधारा का मिलना और परस्पर विश्वास होना ही जीवन की सफलता का मूलमंत्र है।