भोपाल में गीले कचरे से बना रहा हरित ईंधन थर्मोकोल अपशिष्ट से हो रहे हैं नए निर्माण पर्यावरण सुरक्षा और रोजगार का संगम
Bhopal News: भोपाल, जो 41% हरित क्षेत्र के लिए जाना जाता है, स्वच्छ भारत मिशन को साकार करने की दिशा में भोपाल नगर निगम (BMC) ने दो महत्त्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की हैं, जो न केवल शहर की साफ-सफाई को बढ़ावा दे रही हैं बल्कि अपशिष्ट पदार्थों को उपयोगी संसाधनों में भी बदलेंगी। इन परियोजनाओं का क्रियान्वयन पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के अंतर्गत किया जा रहा है।
BMC ने “स्वाहा रिसोर्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड” के सहयोग से "ग्रीन वेस्ट टू बायो-ब्रिकेट्स" प्लांट की स्थापना की है। इस संयंत्र में शहर से प्रतिदिन 20 टन हॉर्टिकल्चर वेस्ट यानि सूखी पत्तियां, घास, पेड़ की टहनियां आदि का प्रसंस्करण करके बायो-ब्रिकेट्स बनाने की तैयारी है, जो कोयले और लकड़ी जैसे पारंपरिक ईंधनों का पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बनेंगे। इसके अतिरिक्त यह परियोजना न केवल खुले में कचरा जलाने की समस्या को कम करेगी, बल्कि ग्रीन एनर्जी उत्पादन को भी बढ़ावा देगी। बायो-ब्रिकेट्स का उपयोग बड़े-बड़े उद्योगों, कमर्शियल रसोईघरों और बॉयलर्स में किया जाएगा।
एक अन्य अभिनव पहल के तहत, BMC ने थर्मोकोल क्रशिंग एंड रीसाइक्लिंग प्लांट की शुरुआत की है। यहां वाणिज्यिक संस्थानों, उद्योगों और घरों से एकत्रित थर्मोकोल को छांटकर कंप्रेस किया जाता है और उससे कंप्रेस्ड ब्लॉक्स बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग निर्माण, इन्सुलेशन और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में होता है।
भोपाल नगर निगम ने स्वच्छ भारत अभियान को आगे बढ़ाते हुए बिट्टन मार्केट में एक विकेंद्रीकृत बायोडीग्रेडेबल कचरा प्रबंधन प्रणाली शुरू की है। यह परियोजना भी पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर आधारित है और प्रतिदिन 5 टन जैविक कचरे को संसाधित करने की क्षमता रखती है। इस संयंत्र से प्रतिदिन लगभग 300–350 घन मीटर बायोगैस और 200–300 किलोवाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। खास बात यह है कि उत्पन्न बायोगैस का उपयोग स्थानीय हाई-मास्ट लाइट्स को जलाने में किया जा रहा है, जिससे क्षेत्र में सतत विकास सुनिश्चित हो रहा है।
इन पहलों के माध्यम से BMC न केवल स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, बल्कि सस्टेनेबल ऊर्जा और ग्रीन इकोनॉमी की दिशा में भी एक बड़ा कदम उठा रहा है। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण संभव होगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे। भोपाल अब अपने अपशिष्ट को संसाधन में बदलकर एक “मॉडल ग्रीन सिटी” के रूप में उभर रहा है। यह पहल अन्य शहरों के लिए भी एक प्रेरणा का स्त्रोत बन रही है।