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सेम सेक्स मैरिज पर केंद्र की सुप्रीम कोर्ट को नसीहत... यह संसद का काम... कोर्ट इससे दूर ही रहे

केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सेम सेक्स मैरिज को वैध ठहराए जाने की डिमांड सिर्फ शहरी एलीट क्लास की है। इससे आम नागरिकों के हित प्रभावित होंगे। सरकार ने कहा कि इस पर फैसला करना संसद का काम है। कोर्ट को इस पर फैसले से दूर रहना चाहिए।

केंद्र ने सेम सेक्स मैरिज पर दूसरा हलफनामा पेश किया और इसके पक्ष में दायर याचिकाओं पर सवाल उठाया है। सरकार ने कहा कि यह केवल शहरी एलीट क्लास का नजरिया है और इन याचिकाओं का मकसद ऐसी शादी को सिर्फ सामाजिक स्वीकार्यता दिलाना है। सभी धर्मों में विवाह का एक सामाजिक महत्व है। हिन्दू में विवाह को संस्कार माना गया है, यहां तक की इस्लाम में भी। इसलिए इन याचिकाओं काे खारिज कर देना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च को सेम सेक्स मैरिज से जुड़ी सभी याचिकाओं को पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया था। बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं। ये बेंच 18 अप्रैल को इन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी।

केंद्र सरकार के विरोध की वजह

केंद्र सरकार सेम सेक्स मैरिज की अनुमति देने के खिलाफ है। इस पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। केंद्र सरकार ने सेम सेक्स मैरिज को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया है। केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती। कानून के मुताबिक भी सेम सेक्स मैरिज को मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। सेम सेक्स मैरिज में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को अलग-अलग कैसे माना जा सकेगा?

केंद्र सरकार ने कहा था- भले ही सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 को डीक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि याचिकाकर्ता सेम सेक्स मैरिज के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें। इसके साथ ही केंद्र ने कहा था कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी। इन मामलों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं।

 

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