दिव्य महाराष्ट्र मंडल

संस्कृत में बताए विद्यार्थी के पांच लक्षण आपमे होने चाहिएः प्रसन्न

- परीक्षा पर चर्चा पर बोले- दिव्यांग बालिका विकास गृह प्रभारी प्रसन्न निमोणकर
रायपुर। संस्कृत में विद्यार्थी जीवन के पांच लक्षण बताए गए है। काकचेष्टा बकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च। अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्॥ यहीं पांच लक्षण आप में होने बेहद जरूरी हैं, क्योंकि आपकी सफलता का आधार भी यही बनते है। वैदिक काल से बनी यह युक्ति आज के वर्तमान परिवेश में भी आवश्यक है। जिन विद्यार्थियों में यह पांच लक्षण उन्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। उक्त बातें महाराष्ट्र मंडल द्वारा संचालित दिव्यांग बालिका विकास गृह के प्रभारी प्रसन्न निमोणकर ने मंडल में आयोजित परीक्षा पर चर्चा के दौरान बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुटे बच्चों से कहीं। 
 
निमोणकर ने संस्कृत की इस श्लोक की व्याख्या करते हुए बच्चों को बताया कि काक चेष्टा यानी विद्यार्थी को हमेशा कौआ की तरह चेष्टा रखनी चाहिए, जहां-जहां ज्ञान मिल रहा हो उसे गहण कर लेना चाहिए। जिस तरह बचपन में आपने प्यासे कौआ की कहानी पढ़ी होगी। उसने पानी पीने के लिए कैसे-एक-एक पत्थर को पानी में डाला था। ठीक उसी तरह हमें अपनी सफलता के लिए मेहनत करनी होगी। 
 
 
बको ध्यानं मतलब बगुले की तरह अपना ध्यान लगाना चाहिए जिस तरह बगुला पानी में मछली पकड़ने के लिए ध्यान लगाता है, इसके लिए वह पानी में एक पैर में खड़ा रहता है। ठीक उसी तरह विद्यार्थी को अपना ध्यान ज्ञान गहण करने में लगाना चाहिए। 
 
स्वान निद्रा यहां स्वान का अर्थ कुत्ता है, जिस तरह कुत्ता हल्की से आहट पर उठ जाता है कोई आलस नहीं करता है उसी प्रकार एक विद्यार्थी को कभी आलस नहीं करना चाहिए।  अल्पहारी मतलब विद्यार्थी को हमेशा कम खाना चाहिए जिससे उसकी पाचन क्रिया स्वथ्य रहे और आलस नहीं आयें। ताकि अगली सुबह आप पूरी तरह फ्रेश रहे। 
 
वहीं इस श्लोक में बताए पांचवें लक्षण गृहत्यागी के बार में कहते हुए उन्होंने कहा कि यह उस समय था जब शिक्षा के लिए गुरुकुल जाना पड़ता था। चूंकि अब शिक्षा के लिए गुरुकुल नहीं जाना पड़ता, इसलिए गृह त्यागी से गृह हटा दें और त्याग को अपना ले। अब रही बात त्याग किसका करें, तो आप सभी आज से ही परीक्षा के खत्म होते तक मोबाइल फोन और सोशल मीडिया का त्याग कर दें। उन्होंने कहा कि हमारे जमाने में मनोरंजन का एकमात्र साधन सिनेमा हुआ करता था। परीक्षा शुरू होने के पहले मैं और मेरे दोस्त इसका त्याग करते और परीक्षा खत्म होने के बाद सभी साथ मिलकर सिनेमा देखने जाते थे।