जुनून हो तो सपने भी साकार होते हैः रीबा... कामनवेल्थ गेम में फेंसिंग स्पर्धा में जीता रजत पदक
0 बेटी के सपने को साकार करने जो बन पड़ा हमने कियाः रीमा
रायपुर। क्राइस्ट चर्च न्यूजीलैंड में कामनवेल्थ गेम्स 2024 में फेसिंग स्पर्धा में उपविजेता भारतीय टीम की अहम् खिलाड़ी रीबा जैकब का अभिनंदन किया गया। संत ज्ञानेश्वर स्कूल में शुक्रवार को आयोजित गरिमामय कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रीबा ने कहा कि अपने अंदर के पसंद को पहचानो और उसे पूरा करने के लिए पूरे जुनून के साथ जुट जाओ। सफलता हर हालत में मिलेगी।
रीबा ने छात्राओं से भी कहा कि वे अपने अंदर के सपनों को, टैलेंट को पहचाने और उसे पूरा करने, निखारने के लिए पूरी क्षमता से जुट जाए। उन्होंने कहा कि इस समय वे केरल के साई हास्टल में रहकर फेसिंग की प्रेक्टिस कर रही है और पढ़ाई भी। यहां के सख्त नियम के अंतर्गत हमें मोबाइल फोन-सोशल मीडिया से दूर रखा जाता है। सप्ताह में एक दिन कुछ मिनटों के लिए ही परिजनों से बात करने की अनुमति मिलती है। इससे खेल के प्रति हमारा ध्यान नहीं भटकता और एकाग्रता बढ़ती है।
रीबा की मां रीमा जैकब ने कहा कि मेरे पति बैनी जैकब सुबह इलेक्ट्रीशियन का काम करने जाते है, शाम को लौटते है तो घर चलता है। ऐसे में जब बेटी के फेसिंग को लेकर सपने का पता चला तो पहले तो बैनी बेटी को अमलीडीह स्थित घर से पांच किमी दूर एमजीएम स्कूल में सुबह शाम प्रैक्टिस करने छोड़ने और लेने जाते थे। इससे उनके काम पर और आय पर खासा प्रभाव पड़ रहा था। रीबा कुछ बड़ी हुई तो उन्होंने उसके लिए साइकिल खरीदी। सुबह-शाम अपनी साइकिल से अभ्यास के लिए जाने लगी। लगभग 20 किमी प्रतिदिन साइकिलिंग के बाद मेरी बेटी फेसिंग की प्रैक्टिस कैसे करती होगी मैं यही सोचती रहती। लेकिन उसके जुनून में कभी कोई कमी नहीं आई। नतीजा आपके सामने है।
रीमा ने कहा कि जब कामनवेल्थ गेम्स में बेटी को भेजने की सूचना हमें मिली तो यह भी पता चला कि हमें उसे अपने खर्चे से हजारों किमी दूर भेजना है। जिसका अनुमानित खर्च 4.5 लाख रुपये है। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होने के कारण हमने कई परिचितों से संपर्क किया। सभी ने हा कहा, लेकिन न तो मदद की और न ही दोबारा फोन काल रिसीव किया। किसी तरह उधारी के पैसों की व्यवस्था हो पाई और बेटी ने अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर अपने सपनों को साकार किया। रीबा खेलों में जितनी पारंगत है उतनी ही पढ़ाई में भी अव्वल है। इस मौके पर उनके पिता बैनी जैकब ने भी अपने संक्षिप्त संबोधन में बेटी की सफलता में सहयोग करने वाले हर एक शख्स का आभार माना।
दिव्यांग बालिका विकास गृह के प्रभारी प्रसन्न निमोणकर ने कार्यक्रम में उपस्थित छात्राओं से कामनवेल्थ गेम्स का मतलब पूछा। जवाब न मिलने पर उन्होंने बताया कि इसी समय अंग्रेजों के गुलाम रहे देशों के बीच होने वाली खेल स्पर्धा की परंपरा सभी देशों के आजाद होने के बाद भी कायम है। स्थितियां परिस्थितियां, वातावरण तो बदल गए, नहीं बदला तो खेलों के प्रति सहयोगी देशों का रवैया। कामनवेल्थ यानी सामूहिक संपत्ति। जिसे चरितार्थ करते हुए सभी मित्र देश एक जगह एकत्रित होकर खेल का यह पर्व मनाते है। कार्यक्रम में मुख्य समन्वयक श्याम सुंदर खंगन, सहसचिव सुकृत गनोदवाले, सचेतक रविंद्र ठेंगड़ी, प्राचार्य मनीष गोवर्धन, उपप्राचार्य राहुल वोडितेलवार सहित शिक्षणगण उपस्थित थे।