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रायपुर सहित देशभर में मनाया जा रहा है 'वट सावित्री व्रत'... क्यों है यह दिन विशेष... जानिए पूरी कथा

वट सावित्री व्रत 19 मई यानी आज मनाया जा रहा है। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए रखती हैं और कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, मान्यता है कि इस दिन माता सावित्री का वास वट वृक्ष में होता है और सुहागिनों के साथ ही व्रत करने वाली सभी नारियों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

छत्तीसगढ़ की राजधानी सहित पूरे प्रदेश में आज वट सावित्री व्रत को मनाया जा रहा है। राजधानी में सुबह से ही सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याएं नंगे पैर, हाथों में थाल लिए, सोलह श्रृंगार के साथ वट वृक्ष की तरफ जाती, तो बड़ी संख्या में पूजा करते नजर आईं। 

बता दें कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत करने की परंपरा है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और वट के पेड़ की पूजा भी करती हैं। इस व्रत का महत्व करवा चौथ जैसा ही है। 

वट वृक्ष (बरगद) एक देव वृक्ष माना जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश और ,सावित्री भी वट वृक्ष में रहते हैं। प्रलय के अंत में श्री कृष्ण भी इसी वृक्ष के पत्ते पर प्रकट हुए थे। तुलसीदास ने वट वृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है। ये वृक्ष न केवल अत्यंत पवित्र है बल्कि काफी ज्यादा दीर्घायु वाला भी है। लंबी आयु, शक्ति, धार्मिक महत्व को ध्यान में रखकर इस वृक्ष की पूजा होती है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस वृक्ष को ज्यादा महत्व दिया गया है। 

वट सावित्री व्रत कथा 
मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा राज्य करते थे। उनकी संतान नहीं थी, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई। इस तेजस्वी पुत्री का नाम सावित्री पड़ा। विवाह योग्य होने पर सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह किया गया। विवाह के बाद पता चला कि सत्यवान अल्पायु है और एक साल बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी, लेकिन सावित्री अपने दांपत्य जीवन को लेकर अडिग रही। नारद जी ने मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन सावित्री सत्यवान के साथ वन को चली गई। वन में सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी। वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया। थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक दूतों के साथ हाथ में पाश लिए यमराज खड़े हैं।

यमराज सत्यवान के प्राण को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री को पीछे आते देख यमराज ने कहा, 'हे पतिपरायणे! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया। अब तुम लौट जाओ। ' सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मैं जाउंगी'। सावित्री की पति भक्ति व निष्ठा देखकर यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री को एक वर मांगने के लिए कहा, तब सावित्री ने वर मांगा, 'मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें।’ सावित्री से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें वरदान दे दिया। वरदान देने के बाद जब यमराज फिर से सत्यवान को लेकर जाने लगे तो सावित्री ने कहा कि पति के बिना पुत्रों का वरदान भला कैसे संभव है। सावित्री की यह चतुराई देख यमराज प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसके प्राण मुक्त कर दिए और अदृश्य हो गए।'