भारत के इतिहास पर नजर डाली जाए, तो इस माटी की कई गौरव गाथाएं हैं। इस धरती पर बहुतेरे वीर सपूतों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए प्राणों की कुर्बानी दे दी। बदले में देश और देशवासियों से कुछ नहीं मांगा, बल्कि देश को आजाद कराने और आने वाली पीढ़ियों का हौसला बनने का काम किया।
यह सिलसिला आज भी नहीं थमा है। फर्क इतना ही है कि तब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। आज अंग्रेजी दास्तां से भारत को आजादी मिले 75 साल हो चुके हैं, लेकिन देश के दुश्मनों चाहे वे घरेलू हों, घुसपैठिएं हों या फिर आतंकी मूल के हों, देश के वीर योद्धा अब भी 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' की मूल भावना को जीवित रखे हुए हैं और देश की रक्षा में दुश्मनों को उनकी औकात दिखाने से नहीं चूक रहे हैं, इसके लिए उन्हें अपने प्राणों की आहूति भी क्यों ना देनी पड़ रही हो।
भारत के लिए 23 मार्च इतिहास का ऐसा दिन है, जब साल 1931 में देश के तीन जाबांजों को अंग्रेजों ने सिर्फ इसलिए सूली पर चढ़ा दिया था, क्योंकि वे अंग्रेजी हुकुमत के लिए बड़ी चुनौती बन गए थे। पर अपनी मातृभूमि के लिए उन अमर बलिदानियों ने अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया और हंसते—हंसते अपने प्राणों की आहूति दे दी। आज उनकी शहादत की 92 वीं वर्षगांठ पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार ने एक वीडियो जारी कर उन अमर बलिदानियों की वीर गाथा को प्रसारित करते हुए उन्हें नमन किया है।