रायपुर

विधानसभा में बोध घाट परियोजना पर तीखी बहस... सदन में मंत्री और पूर्व मंत्री के बीच तकरार

रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में सोमवार को बोधघाट परियोजना पर जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के बीच जोरदार बहस हुई। विपक्षी सदस्य बृजमोहन अग्रवाल ने आरोप लगाया कि ब्लैक लिस्टेड कंपनी Wapcos को फायदा पहुंचाने के लिए 41 करोड़ का काम दिया गया। जिस पर मंत्री ने कहा स्वीकार किया कि डीपीआर पूरा नहीं हुआ है।  

दरअसल, बृजमोहन ने कहा कि सीएम भूपेश बघेल और जल संसाधन मंत्री चौबे ने सदन में कहा था कि इसी कार्यकाल में बोधघाट प्रोजेक्ट को पूरा करेंगे, जबकि अभी डीपीआर भी तैयार नहीं हुआ है। प्रश्नकाल के दौरान बृजमोहन ने बोधघाट परियोजना का मुद्दा उठाया। उन्होंने पूछा कि क्या बोधघाट परियोजना का काम प्रारंभ होने वाला है। यदि हां, तो कब से? 

इस पर मंत्री ने बताया कि वर्तमान में बोधघाट बहुद्देश्यीय वृहद परियोजना का सर्वेक्षण और अनुसंधान कार्य प्रंगति पर है। अत: निर्माण कार्य प्रारंभ करने की तिथि अभी बता पाना संभव नहीं है। 

इस पर बृजमोहन ने पूछा कि बोधघाट परियोजना के सर्वेक्षण का कार्य किस एजेंसी को दिया गया है? क्या एजेंसी को पूर्व में भी विभाग ने सर्वेक्षण का कार्य दिया था? काम पूरा हुए बिना 12 करोड़ का पेमेंट भी किया जा चुका है, जबकि पर्यावरणीय स्वीकृति में यह स्पष्ट उल्लेख है कि वहां हाइड्रल प्रोजेक्ट लगाया जा सकता है, सिंचाई नहीं हो सकती। 

इस पर मंत्री चौबे का जवाब आया कि अभी भी विभाग का मानना है कि बोधघाट परियोजना से बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा में सिंचाई हो सकती है। मंत्री ने यह स्वीकार किया कि अभी डीपीआर का काम पूरा नहीं हुआ है। इसके लिए एजेंसी ने समय बढ़ाने की मांग की है।

मंत्री चौबे ने बताया कि बोधघाट परियोजना के सर्वेक्षण व अनुसंधान और भारत शासन की वैधानिक अनुमतियां प्राप्त करने का काम Wapcos (वाप्कोस) लिमिटेड गुरुग्राम को दिया गया है। जल संसाधन विभाग द्वारा उक्त एजेंसी को पूर्व में सर्वेक्षण का कार्य नहीं दिया गया है। उक्त एजेंसी के किसी अन्य राज्य में ब्लैक लिस्टेड होने की जानकारी शासन को नहीं है। बोधघाट प्रोजेक्ट के सर्वे पर अब तक 1250.87 लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं।

इस पर बृजमोहन अग्रवाल ने बताया कि वाप्कोस कंपनी को मध्यप्रदेश शासन द्वारा ब्लैक लिस्टेड किया जा चुका है। इस संबंध में ऑडिटर जनरल ने विभाग को पत्र लिखकर आपत्ति की है कि यह काम 1980 में हो चुका है। इसके बावजूद बिना टेंडर के 41 करोड़ का काम दिया गया और 12 करोड़ का पेमेंट भी कर दिया। बृजमोहन ने आरोप लगाया कि जान-बूझकर लाभ पहुंचाने के लिए कंपनी को काम दिया गया। पर्यावरणीय स्वीकृति में केंद्र ने यह स्पष्ट किया है कि बोधघाट प्रोजेक्ट में सिंचाई नहीं हो सकती।