'एक दिन हमरो आही' और विरासत पुस्तक का लोकार्पण
रायपुर। साहित्यकार गिरीश पंकज की गजल संग्रह 'इक दिन मंजर बदलेगा' का छत्तीसगढ़ी में भावानुवाद 'एक दिन हमरो आही यानी ' और विरासत पुस्तक का लोकार्पण 3 नवंबर को वरिष्ठ साहित्यकार चितरंजन कर ने किया। गिरीश पंकज की इस पुस्तक का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद साहित्यकार विवेक कुमार रहाटगांवकर ने किया है।
गिरीश पंकज ने कहा कि यह आयोजन मुझे भावुक कर देने वाला है। मेरी पुस्तक 'इक दिन मंजर बदलेगा' का छत्तीसगढ़ी अनुवाद 'एक दिन हमरो आही' का लोकार्पण हो रहा है। जिसका अनुवाद विवेक कुमार रहाटगांवकर ने किया है। एक और पुस्तक 'विरासत' का विमोचन हुआ, जिसमें विवेक कुमार के पिता और पुत्र के साथ उनकी रचनाएं भी शामिल हैं। कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में भाषाविज्ञानी डॉक्टर चित्तरंजन कर उपस्थित थे। बंधु राजेश्वर खरे के अलावा मित्र डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग, शशांक खरे, जयंत थोरात, सुखनवर हुसैन सहित कई मित्र शुभकामना देने विद्यमान थे। सभी ने हृदय के साथ पुस्तक का स्वागत किया।
विवेक कुमार ने बताया कि 'एक दिन हमरो आही' पुस्तक में एक तरफ हिंदी ग़ज़ल है और उसके सामने वाले पृष्ठ पर छत्तीसगढ़ी भावानुवाद। वैभव प्रकाशन, रायपुर ने बहुत सुंदर ढंग से पुस्तक का प्रकाशन किया है। बताते चले कि विवेक कुमार रहाटगांवकर का जन्म 1 अगस्त 1962 को हुआ। संगीत और साहित्य के क्षेत्र में उनकी काफी रूचि रही है। वे स्कूल शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त व्याख्य़ाता है।
कार्यक्रम का सुमधुर संचालन साधना राहटगांवकर ने किया, जो जानी-मानी ग़ज़ल गायिका हैं। उन्होंने पुस्तक के एक ग़ज़ल के साथ विवेक कुमार के छत्तीसगढ़ी अनुवाद को भी गाकर सुनाया। कार्यक्रम का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि मुझे बिना बताए राहटगांवकर परिवार ने कार्यक्रम के अंत में केक काटने की घोषणा की। 1 नवंबर को मेरा जन्मदिन था। इस अवसर पर सब ने मेरा जन्मदिन मनाया। खुशी इस बात की हुई कि पहली बार मेरा जन्मदिन सार्वजनिक रूप से मनाया गया।