दिव्य महाराष्ट्र मंडल

‘पुरुषोत्तम योग’ पाठ के साथ सरल शब्दों में व्याख्या... सभी ने सराहा

रायपुर। महाराष्ट्र मंडल की आध्यात्मिक समिति ने बीते दिनों भगवतगीता के 15वें अध्याय यानी पुरुषोत्तम योग का पाठ किया। इस दौरान आध्यात्मिक समिति की समन्वयक आस्था काले का सरल शब्दों में इसकी व्याख्या की। उन्होंने बताया कि श्लोक क्रमांक 1-5 में मनुष्य की दुर्बलताओं रूपी शाखाएं समस्त लोकों में व्याप्त हो रहीं हैं उन्हें वैराग्य रूपी शस्त्र द्वारा काटकर भगवान अर्थात परमेश्वर की शरण में आना चाहिए। आस्था ने बताया कि पुरुषोत्तम योग में श्रीकृष्ण ने कहा कि सूर्य और चंद्रमा का तेज मेरा ही है। मैं सृष्टि के कण-कण में विराजमान हूं, जो व्यक्ति त्रिदोषों का त्याग कर अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर लेता है और मेरी शरण में आता है वह मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।

शताब्दी पांडेय ने कहा कि महाराष्ट्र मंडल आध्यात्मिक समिति द्वारा आयोजित गीता के पंद्रहवें अध्याय का अर्थ सहित वाचन अत्यंत प्रभावकारी रहा। संक्षिप्त में कहें तो जीवन का सार आज के सत्र में मिल गया कि  मनुष्य योनि बड़े ही भाग्य से मिलती है, जिसमें हम इंद्रियों के मोहजाल से मुक्त होकर भगवान की भक्ति कर गोलोक धाम को जाने का अपना मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। आध्यात्मिक समिति की प्रमुख आस्था काले ने बहुत ही रोचक एवं सरल शब्दों में अध्याय का भावार्थ समझाया, डॉ अलखनंदा नारद ने स्पष्ट उच्चारण और भाव के साथ श्लोकों का पठन किया।

डॉ अलकनंदा नारद ने कहा कि हम सब गीता के श्लोकों का पाठ तो करते हैं परन्तु उसके अर्थ से अनभिज्ञ रहते हैं। आस्था जी का साधुवाद करती हूं कि उन्होंने हम सबको जोड़ा और हम सभी इससे लाभान्वित हुए। मंडल की वरिष्ठ आजीवन सभासद संध्या खंगन ने कहा कि गीता के 15वें अध्याय की व्याख्या आस्था काळे ने बहुच सुंदर ढंग से की। उदाहरण सहित उनके समझाने का तरीका बेहद अच्छा था। वहीं अर्चना जतकर ने कहा कि आस्था ने गीता के 15वें अध्याय का अर्थ सरल और उदाहरण सहित समझाया।