4 मई को भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह का प्रकटोत्सव मनेगा। पद्म और स्कंद पुराण के मुताबिक वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे। ये तिथि गुरुवार को रहेगी। नृसिंह अवतार सतयुग के चौथे चरण में हुआ था। ये भगवान विष्णु के रौद्र रूप का अवतार है।
भगवान विष्णु अपने भक्त प्रहलाद को दैत्य हिरण्यकश्यप से बचाने के लिए इस रूप में प्रकट हुए। ये अवतार प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए शाम को भगवान नरसिंह की विशेष पूजा होती है। इस बार सिद्धि योग बनने से ये पर्व और खास रहेगा।
कथा के मुताबिक दैत्य हिरण्यकश्यप का बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था, इसलिए प्रहलाद पर अत्याचार होते थे। कई बार मारने की कोशिश भी की गई। भगवान विष्णु अपने भक्त को बचाने के लिए खंबे से नरसिंह रूप में प्रकट हुए। इनका आधा शरीर सिंह का और आधा इंसान का था। इसके बाद भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को मार दिया।
ये अवतार बताता है कि जब पाप बढ़ता है तो उसको खत्म करने के लिए शक्ति के साथ ज्ञान भी जरूर होता है। ज्ञान और शक्ति पाने के लिए भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखते हुए ही उन्हें पवित्रता और ठंडक के लिए चंदन चढ़ाते हैं।
संध्याकाल में की जाती है पूजा
भगवान नरसिंह की विशेष पूजा संध्या के समय की जानी चाहिए। यानी दिन खत्म होने और रात शुरू होने से पहले जो समय होता है उसे संध्याकाल कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इसी काल में भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे।
भगवान नरसिंह की पूजा में खासतौर से चंदन चढ़ाया जाता है और अभिषेक किया जाता है। ये भगवान विष्णु के रौद्र रूप का अवतार है। इसलिए इनका गुस्सा शांत करने के लिए चंदन चढ़ाया जाता है। जो कि शीतलता देता है। दूध, पंचामृत और पानी से किया गया अभिषेक भी इस रौद्र रूप को शांत करने के लिए किया जाता है।
पूजा के बाद भगवान नरसिंह को ठंडी चीजों का नैवेद्य लगाया जाता है। इनके भोग में ऐसी चीजें ज्यादा होती हैं जो शरीर को ठंडक पहुंचाती हैं। जैसे दही, मक्खन, तरबूज, सत्तू और ग्रीष्म ऋतुफल चढ़ाने से इनको ठंडक मिलती है और इनका गुस्सा शांत रहता है।
वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह के प्रकट होने से इस दिन जल और अन्न का दान दिया जाता है। जो भी दान दिया जाता है वो, चांदी या मिट्टी के बर्तन में रखकर ही दिया जाता है। क्योंकि मिट्टी में शीतलता का गुण रहता है।
इसलिए लिया था यह अवतार
नरसिंह रूप भगवान विष्णु का रौद्र अवतार है। ये दस अवतारों में चौथा है। नरसिंह नाम के ही अनुसार इस अवतार में भगवान का रूप आधा नर यानी मनुष्य का है और आधा शरीर सिंह यानी शेर का है। राक्षस हिरण्यकश्यप ने भगवान की तपस्या कर के चतुराई से वरदान मांगा था। जिसके अनुसार उसे कोई दिन में या रात में, मनुष्य, पशु, पक्षी कोई भी न मार सके। पानी, हवा या धरती पर, किसी भी शस्त्र से उसकी मृत्यु न हो सके।
इन सब बातों को ध्यान में रख भगवान ने आधे नर और आधे मनुष्य का रूप लिया। दिन और रात के बीच यानी संध्या के समय, हवा और धरती के बीच यानी अपनी गोद में लेटाकर बिना शस्त्र के उपयोग से यानी अपने ही नाखूनों से हिरण्यकश्यप को मारा।