रायपुर। अर्थशास्त्र अध्ययन शाला एवं पब्लिक आउटरीच सेंटर के संयुक्त तत्त्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में ख्यातिलब्ध अर्थशास्त्री एवं अटलबिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ए.डी.एन. वाजपेयी का आगमन हुआ । कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल, कुलपति पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,ने की| कार्यक्रम संयोजन प्रो. रविन्द्र के. ब्रहमें अध्यक्ष, अर्थशास्त्र अध्ययनशाला,एवं प्रो.कल्लोल के घोष, निदेशक पब्लिक आउटरीच सेंटर ने किया| अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, प्रो. राजीव चौधरी एवं अन्य विभाग अध्यक्षों की उपस्थिति में यह आयोजित हुआ ।
कार्यक्रम के आरंभ में सरस्वती-वंदना, कुलगीत एवं अतिथियों को पुष्प-गमला भेंटकर स्वागत किया गया । स्वागत उद्बोधन में प्रो. रवींद्र ब्रहमें ने भारतीय ज्ञान प्रणाली की आवश्यकता तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्य एवं आवश्यकता पर बात करते हुए बताया कि प्रो. वाजपेयी नवें दशक से वैदिक सनातन अर्थशास्त्र पर शोध कर रहे हैं। आज की क्रिटिकल थिकिंग ही शास्त्रार्थ है, जिस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति जोर देती है ।
प्रो. वाजपेयी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को केंद्रित कर सहज प्रश्न किया कि - “अर्थशास्त्र के जनक एडम स्मिथ माने जाते हैं, जबकि हमारे यहाँ ‘कौटिल्य’ ने तीन सौ ईसा पूर्व ही कश्मीर में अर्थशास्त्र पर प्रामाणिक जानकारी दी । पाश्चात्य देशों अमेरिका, इंगलैण्ड के पास अपनी सुदीर्घ ज्ञान प्रणाली नहीं है वे लेटिन या ग्रीक पर निर्भर हैं जबकि भारत के पास समर्थ और सशक्त ज्ञान परंपरा है। हमने किसी देश को उपनिवेश नहीं बनाया, हमने समरसता को बढ़ावा दिया है। हमारी संस्कृति का मूल ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ है।” प्रो. वाजपेयी ने शोधार्थियों , छात्रों को जूनियर फेकेल्टी मेंबर कह कर संबोधित करते हुए कहा कि– “आपका समाज की समस्याओं से प्रत्यक्ष संबंध है । कृषि, व्यापार, उद्योग, अर्थव्यवस्था में क्या चल रहा है? और क्या नवीन किया जा सकता है? उसे समझना होगा।”
भारतीय ज्ञान परंपरा को सुगमता से उद्घाटित करते हुए उन्होंने अकादमिक ज्ञान, हमारी परंपराएँ एवं हमारा कर्तव्य कह कर चर्चा आरंभ की। अकादमिक ज्ञान से चर्चा का आरंभ कर उन्होंने भारत में शिक्षा की चौदह शाखाओं - जिनमें पुराण, न्याय, मीमांसा, धर्मशास्त्र, छह वेदांग - शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष, कल्प और चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अर्थववेद उनमें निहित विषय एवं विवरण को बताया ।
पुनः उन्होंने भारतीय गुरुकुल प्रणाली के नालंदा, तक्षशिक्षा, विक्रमशिला आदि के गौरव को बताते हुए कहा - तर्कशास्त्र, पुरुषार्थ, रामायण और महाभारत की ‘ज्ञान के भंडार के रूप’ में जाने जाते हैं | यह ज्ञान भण्डार हम सब भारतीयों में पहले से व्याप्त है इसलिए हम सब इस तत्वचर्चा में सहज ही सहभागी बन जाते हैं| अर्थात ज्ञान हमारे डी.एन.ए. में गुरु शिष्य परंपरा में स्थानांतरित होते चला जाता है । भारतीय ज्ञान प्रणाली समाज और नागरिक हित, कल्याण की अवधारणा पर केंद्रित है| सभी भारतीय भाषाओं का संस्कृत से निकट का संबंध है तथा संस्कृत रचनाओं का छंद और संगीत पर व्यापक प्रभाव है। उन्होंने आगे कहा कि आयुर्वेद, योग, लोक और जनजातीय चिकित्सा पद्धति का भारत में समृद्ध इतिहास है। योग हमें भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ता है । आधुनिक दुनिया भी योग को अपना कर स्वास्थ्य लाभ ले रही है। योग विज्ञान को और गहराई से अध्ययन करना आज की आवश्यकता है।
प्रो. वाजपेयी ने भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, धातु विज्ञान, ज्योतिष एवं गणित की चर्चा की तथा अम्ल,क्षार, पॉलीमर आदि की अवधारणाओं को प्रस्तुत किया| उन्होंने जोर देकर कहा कि - “भारत का अपना पारंपरिक खानपान, भेषज विज्ञान, रहन-सहन, जलवायु, और कृषि संस्कृति है| भारतीय स्थापत्य और कलाएं विशिष्ट ,हैं जिनमें पारंपरिक लोक गाथाएं गायी जाती हैं| उन्होंने पंडवानी, रहस, रामलीला तथा भरथरी गायन एवं प्रमुख गायकों की चर्चा की जो हमें हमारी विरासत, संस्कृति, संस्कार से जोड़कर समृद्ध करते हैं| रामायण,महाभारत एवं पौराणिक पात्र आज सार्वभौमिक हैं उनका तात्विक और सात्विक स्वरूप हमारे संस्कारों, नामकरणआदि में सहज ही दिख जाता है|
कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल ने छात्रों से कहा कि- “हमें भारतीयता, भारतीय परंपरा एवं भारतीय भाषाओं पर गर्व करते हुए इनका संपोषण करना चाहिए| आज ज्ञान को किसी एक भाषा में नहीं बांधा जा सकता, आज आवश्यकता है कि विद्यार्थी, भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़कर समाजोपयोगी शोध की दिशा में नूतन कार्य करें। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के बड़ी संख्या में शिक्षकगण, शोधार्थीगण एवं विद्यार्थियों ने सहभागिता की।