बच्चों में आंखों के कैंसर का खतरा हो सकता है, जिसकी वजह से बच्चा हमेशा के लिए अंधा हो सकता है। मेडिकल की भाषा में इस कैंसर को रेटिनोब्लास्टोमा के नाम से जानते हैं। क्योंकि यह आंखों के रेटिना में ही बनता है। रेटिना आंख के पीछे तंत्रिका टिशू की एक पतली परत होती है और इससे एक या दोनों आंखों पर असर पड़ सकता है। बता दें कि इस कैंसर का खतरा धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है। यही वजह है कि लोगों को इसके बारे में जागरुक करने के लिए 14 मई से 20 मई तक रेटिनोब्लास्टोमा अवेयरनेस वीक मनाया जा रहा है।
आमतौर पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों में इस तरह का कैंसर देखने को मिलता है और करीब 8000 जन्मे बच्चों में एक बच्चा इस कैंसर से प्रभावित होता है। पूरी दुनिया में हर साल 4000 से 5000 इसके नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से 15 सौ से 2000 मामले भारत से होते हैं। डॉक्टर्स का मानना है कि पेट में पल रहे बच्चों में कुछ न्यूट्रिएंट्स की कमी से यह बीमारी होती है। वहीं अगर माता-पिता या भाई-बहन में किसी को आंख का कैंसर हो तो बच्चे में इसकी संभावना 50 फ़ीसदी बढ़ जाती है लेकिन अगर समय पर इस बीमारी का पता चल जाए तो इलाज मुमकिन है।
बताया जा रहा है कि अगर यह ट्यूमर आंखों से बाहर फैल जाता है तो शरीर के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले सकते हैं, जैसे दिमाग और हड्डियों को भी प्रभावित कर सकता है। क्योंकि रेटिनोब्लास्टोमा ज्यादातर बच्चों में ही होता है, इसलिए इसके लक्षण पहचान पाना मुश्किल होता है। शुरुआत में तो इसके लक्षण पता ही नहीं चलते, फिर भी इन लक्षणों से पहचान की जा सकती है।
इन लक्षणों से पहचाने —
आंखों में सफेद चमक
रंग की पहचान नहीं कर पाना
आंखों का फड़कना
सफेद हिस्से में रेडनेस
रोशनी कमजोर होना
आंखों में दर्द या सूजन
भैंगापन
अगर इनमें से कोई भी लक्षण बच्चों में नजर आए तो डॉक्टर से फौरन मिलना चाहिए जिसके बाद एमआरआई और अल्ट्रासाउंड के टेस्ट के बाद बीमारी का पता लगाया जा सकता है। छोटे आकार के कैंसर के लिए लेजर थर्मोथेरेपी या क्रायोथेरेपी किया जाता है। बड़े ट्यूमर के लिए रेडिएशन थेरेपी किया जाता है। इसमें रेडियोएक्टिव किरणों के द्वारा ट्यूमर की सिकाई की जाती है। इसके अलावा रेटिनोब्लास्टोमा को जड़ से खत्म करने के लिए कैंसर रोधी दवाएं चलती रहती है।