रायपुर। छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ अंचल का पहला पर्व के रूप में मनाया जाने वाला प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण का पर्व है जिसे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । हरेली शब्द से ही समझ आ रहा है कि यह हरियाली का त्योहार है।
आषाढ़ , सावन माह में बारिश होने के कारण सभी ओर हरियाली छा जाती है और किसान द्वारा बोयी गई धान भी लहलहा उठती है । इसलिए प्रकृति को अपना कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह Hareli Tihar मनाया जाता है । हरेली विशेष रूप से किसानों के द्वारा मनाया जाता है, लेकिन इसमें अन्य सभी लोग भी शामिल होते हैं। इस प्रकार यह पर्व प्रकृति प्रेम को प्रदर्शित करता है। बस्तर क्षेत्र की जनजातियां हरेली पर्व को अमुस तिहार के रूप में मनाते हैं।
किसान द्वारा आषाढ़ माह में धान की बुवाई करने के बाद वह उम्मीद करता है कि उसकी फसल अच्छी होगी। जब धान थोड़े बड़े हो जाते हैं तो उसमे बियासी की जाती है। बियासी धान की खेती का अंतिम चरण है जिसमें जब धान छोटे छोटे पौधे के रूप में बड़ा हो जाता है तो खेत में हल चला दिया जाता है ताकि धान का पौधा सभी ओर बराबर वितरित हो जाए कहीं कम ज्यादा ना रहे,और खेत भी बराबर हो जाए कहीं गड्ढा या ऊंच ना रहे।
सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।