दिव्य महाराष्ट्र मंडल

कर्तव्यों का पालन करो, यही मुक्ति का मार्ग हैः आचार्य धनंजय शास्त्री

0- महाराष्‍ट्र मंडल के संत ज्ञानेश्‍वर सभागृह में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा का हुआ समापन 

रायपुर। जिस तरह बाहर निकलने पर हम घर की बिजली, लाइट, पंखे, टीवी, एसी आदि बंद करते हैं। इसके पीछे हमारी मंशा अधिक बिजली बिल से बचना होती है। जबकि हमारी संस्था, हमारा राज्य, हमारा राष्ट्र, हमारा विश्व भी हमारे घर से कम नहीं है। घर में किया जाने वाला हमारा व्‍यवहार घर से बाहर भी होना चाहिए। बाहर किसी भी तरह के दुरुपयोग, लापरवाही, बेफ्रिकी और मनमानी को चित्रगुप्‍त अपने खाता- बही में पाप के रूप में दर्ज करते हैं। हमें इससे बचना चाहिए। आचार्य धनंजय वैद्य शास्‍त्री ने शनिवार को श्रीमद् भागवत कथा के समापन प्रवचन पर इस आशय का प्रवचन किया। 
 
 
आचार्यश्री ने स्‍पष्‍ट किया कि मृत्यु के बाद आप को आपके कर्मों के अनुसार ही फल मिलेगा। शास्त्रानुसार कर्तव्य का पालन ही धर्म है और यही मोक्ष का मार्ग भी है। भगवान श्रीकृष्ण और रुखमिणी के विवाह के बाद उन्‍होंने प्रभु के 16107 अन्‍य विवाह के प्रसंगों पर सरल शब्‍दों में समझाया। 
 
आचार्य धनंजय शास्‍त्री ने बताया कि अगर कन्या विवाह योग्य है, तो वह इच्छा के अनुसार अपने लिए वर का वरण कर सकती है। इसके लिए वर्ण और गोत्र जरूर देखना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार वर्ण संकर विवाह पितरों को नर्कगामी बनाता है। श्रीमद् भागवद् गीता में वर्ण संकर को धर्म की हानि करने वाला और समाज के लिए अव्यवस्था उत्पन्न करने वाला माना गया है।
 
 
आचार्य शास्‍त्री ने श्रीकृष्‍ण- सक्राजीत की मित्रता की कथा सुनाते हुए कहा कि जब भी आपकी किसी से मित्रता है, तो संशय ही स्थिति में सीधे अपने मित्र से चर्चा कर संशय को दूर करना चाहिए। सक्राजीत ने अपने संशय को सच मान लिया। दूसरी ओर श्रीकृष्‍ण भी बलराम से यही कहते हैं कि सक्राजीत को सेंवतीमणी को लेकर कोई भ्रम है, तो उसे हमें दूर करना पड़ेगा। यही धर्म है। अपने मित्र से दोस्‍ती खत्‍म कर उस पर हमला करना अधर्म है।