रायपुर। महाराष्ट्र मंडल की परिवार परामर्शदाता समिति की परिचर्चा में बतौर निष्कर्ष यह बात सामने आई कि आजकल बच्चों में इमोनशल अटैचमेंट नहीं होने के कारण परिवार बिखर रहे हैं। उनके सभी काम व योजनाएं आत्मकेंद्रित होते हैं, परिवार के लिए नहीं।
सचिव चेतन गोविंद दंडवते ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी परिवार की इच्छा को नजरअंदाज कर सिर्फ अपने कैरियर को प्राथमिकता देती है। साथ ही शादी के तुरंत बाद उन्हें अपने जीवन साथी से वो सब कुछ चाहिए होता है, जिसे जुटाने में उसके माता- पिता ने सारी जिंदगी खपा दी। युवाओं की इन्हीं महत्वाकांक्षाओं के कारण आजकल शादी की उम्र लगातार बढ़ रही है। वर्तमान पीढ़ी के युवक तो 30- 32 साल की उम्र में शादी के बारे में सोचते हैं, जबकि लड़कियां भी 27-28 साल की आयु तक शादी पर चर्चा करना पसंद नहीं करती। देर से हुई शादी में पति-पत्नी में भावनात्मक लगाव नहीं होता। बच्चों को लेकर भी कोई जल्दबाजी नहीं होती। नतीजतन छोटी- छोटी बातों पर अनबन और मतभेद भी तलाक तक पहुंच जाते हैं।
महाराष्ट्र नाट्य मंडल के निदेशक प्रा. अनिल श्रीराम कालेले ने कहा कि बड़ी उम्र में हो रही शादियां चिंतनीय हैं। शादी की आदर्श उम्र क्या हो, इस विषय पर समाज के मार्गदर्शकों व वरिष्ठ जनों को बैठकर अनुशासन तय करना चाहिए, मार्गदर्शन देना चाहिए। पहले मराठी समाज में शादी की लड़कियों की आदर्श आयु 21 वर्ष और लड़कों के लिए 27 साल थी, तो क्या वर्तमान स्थितियों- परिस्थितियों, सामाजिक- आर्थिक बदलावों और जरूरतों के बीच यह उम्र अभी भी आदर्श है। और नहीं तो सबसे सही उम्र क्या हो? ताकि युवाओं कैरियर, भावी परिवार की प्लानिंग पर सामंजस्य बिठा सके।
महाराष्ट्र मंडल के मुख्य समन्वयक श्याम सुंदर खंगन ने कहा कि बाजार में ऐसी- ऐसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिससे युवा अपनी अपनी शारीरिक जरूरतों को बिना झिझक पूरा कर लेते हैं। ऐसे में शादी के प्रति उनकी जिज्ञासा अथवा इच्छाशक्ति वैसे नहीं होती जैसे आज से दो- तीन दशक पहले होती थी। अगर बच्चे घर- परिवार छोड़कर करियर के लिए महानगरों में जा रहे हैं, तो उन्हें कैसी और कितनी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, इस पर कहीं ना कहीं युवाओं के माता-पिता को विचार करना होगा।
सचेतक रविंद्र ठेंगड़ी ने कहा कि सचिव चेतन दंडवते के नेतृत्व में 30 जून को महाराष्ट्र मंडल में मराठी वर- वधू परिचय सम्मेलन होना था, जिसे स्थगित करना पड़ा। इसकी बड़ी वजह परिचय सम्मेलन में युवाओं के 57 रजिस्ट्रेशन के मुकाबले लड़कियों की ओर से मात्र 6- 7 पंजीयन ही हुए। ऐसे में परिचय सम्मेलन ही असंभव हो गया और स्थगित करना पड़ा। ठेंगड़ी ने कहा कि यह एक उदाहरण है कि लड़कियों और उनके माता-पिता को वर के बायोडाटा व फोटो तो चाहिए लेकिन अपनी बेटी का बायोडाटा प्रसारित करने के लिए उन्हें किसी मध्यस्थता, मैरिज ब्यूरो अथवा शादी डाॅट काॅम जैसी सुविधाओं की जरूरत नहीं है। ऐसे में अच्छे व टिकाऊ रिश्तों की पहचान कैसे पूरी होगी। वास्तव में लड़की के अभिभावकों को सामाजिक एवं व्यावहारिक होना अति आवश्यक है।
महाराष्ट्र मंडल के अध्यक्ष अजय मधुकर काले ने कहा कि आज शादियां संस्कृति बचाने के लिए कर दी जा रही है। चली तो ठीक, नहीं चली तो तलाक का विकल्प तो खुला ही है। आज समाज के बड़े बुजुर्गों को इस दिशा में काम करने की जरूरत है, ताकि सही समय पर बच्चों में इस बात की समझ विकसित की जा सके कि परिवार को एक सूत्र में कैसे पिरोकर रखना है।
काउंसलर और मोटिवेशनल स्पीकर मंजरी बक्षी ने कहा कि जिस तरह से लड़कियां पैकेज के पीछे अंधाधुंध भाग रहीं हैं और उन्हें अपने जैसा ही पति चाहिए। ऐसे वातावरण से वह काफी चिंतित है क्योंकि उनके भी दो बेटे हैं। उन्हें आखिर कैसे जीवन संगिनी मिलेगी? यह सोचकर ही वे विचलित हो जातीं हैं।
वरिष्ठजन सेवा समिति के दीपक पात्रीकर ने कहा कि सभी उलझनों का एक ही निदान है कि पहले अभिभावक स्वयं संस्कारी बनें और फिर बच्चों में संस्कार के साथ परिवार, रिश्ते, समाज, धर्म, तीज- त्यौहार के महत्व की समझ विकसित करें। काम कठिन हो सकता है, पर असंभव नहीं।
संत ज्ञानेश्वर स्कूल के प्रभारी परितोष डोनगांवकर के मुताबिक जब भी अभिभावक करियर के लिए अपने बच्चों को बाहर भेजते हैं, तो उन्हें यदाकदा बच्चों के निवास पर भी आना-जाना चाहिए। इससे बच्चों की स्वच्छंदता काफी हद तक नियंत्रित होगी और उनका कुछ तो दबाव होगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता मनीषा भंडारकर ने कहा कि करियर के लिए बाहर निकले बच्चों के साथ माता- पिता का शत- प्रतिशत साथ होता है। बच्चे चाहे अनुशासनहीन हो, संस्कारविहीन हो या मनमर्जी से लिव इन में रहें, शादी कर ले, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी भी विपरीत स्थिति पर अभिभावक बच्चों का पक्ष लेते हैं, उन्हें समझाते नहीं है। यही वजह है कि साधारण से विवाद पर भी बच्चों के वैवाहिक संबंध विच्छेद करने के निर्णय पर मुहर लगाते हुए कोर्ट के कटघरे में भी खड़े हो जाते हैं। अभिभावकों का बच्चों के प्रति यह उदार रवैया ही उन्हें स्वच्छंद बनता है और ससुराल पक्ष के लोगों से भावनात्मक रूप से न जुड़ने की आजादी देता है।
परिवार परामर्शदाता समिति की समन्वयक शताब्दी पांडे ने कहा कि परिवार का बिखराव आज की बड़ी समस्या है। कोई समाज इससे अछूता नहीं है। महाराष्ट्र मंडल इस दिशा में लगातार काम कर रहा है। मंडल सभी से अपील भी करता है कि घर से वृद्धजन, माता- पिता अपने बच्चों को परिवार जोड़ने का संस्कार अवश्य दें।