महाराष्ट्र मंडल में मनाया गया... छत्रपति शिवाजी का साम्राज्य दिवस... जय भवानी, जय शिवाजी के नारों से हुआ गुंजायमान
2023-07-29 07:56 PM 700
रायपुर। महाराष्ट्र मंडल में शनिवार को छत्रपति शिवाजी का साम्राज्य दिवस मनाया गया। वीर शिवाजी महाराज के साम्राज्य दिवस की आज 350 वीं वर्षगांठ थी। इस मौके पर मंडल में वीर शिवाजी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलन किया गया और उनकी आरती उतारी गई। इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के साम्राज्य में जिस तरह से उनके आने पर जोश से भरपूर होकर दरबान उनके आने की सूचना सभागार को देते थे, उसी तर्ज पर एक युवक ने जोशिले अंदाज में उन शब्दों को दोहराया। इसके बाद जय भवानी, जय शिवानी, हर—हर महादेव और छत्रपति शिवाजी महाराज के जयकारों से पूरा मंडल परिसर गुंजायमान हो गया।
इस खास मौके पर छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए स्वयं का जीवन समर्पित करने वाले समाजसेवी और आरएसएस के स्वयं सेवक सुधीर श्रीरंग थोरात मंडल पधारे थे, जिनका मंडल अध्यक्ष अजय काले ने सूतमाला पहनाकर आत्मीय स्वागत किया, तो श्रीफल और प्रतीक चिन्ह प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। वहीं मंडल उपाध्यक्ष श्याम सुंदर खंगन ने शॉल पहनाकर उन्हें सम्मान दिया।
आज साम्राज्य दिवस के मौके पर मंडल में छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसके मुख्य वक्ता के तौर पर सुधीर श्रीरंग थोरात ने शिवाजी महाराज के जीवनकाल पर प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि 1638 में शिवाजी महाराज ने जब पुरंदर किला जीता, तब उनकी उम्र महज 18 वर्ष थी। उस समय मराठा साम्राज्य के पास बमुश्किल दर्जनभर किले ही थे। उन्होंने अपने 32 साल के साम्राज्य काल में 250 से अधिक किले जीत लिए। थोरात ने बताया कि 18 साल की उम्र में ही शिवाजी महाराज ने 1 लाख 5 हजार घुड़सैनिकों का दल तैयार कर लिया था। इनमें से 60 हजार सैनिक शिलेदार (जो अपने घोड़ों की देखभाल कर सकते हैं) थे, जबकि 45 हजार बार्गीव (जिनके घोड़ों का खर्च राजकीय कोष से जाता था) थे। इसके अलावा 1 लाख पैदल सैनिक भी शिवाजी के सेना में थे। उस समय प्रत्येक सैनिक को 5 रुपए का वेतन दिया जाता था। शिवाजी महाराज ने अपने साम्राज्य के शुरुआती दौर में ही पुर्तगिज की मदद से जहाज का निर्माण भी किया। जब पुतर्गिज को लगा कि इन नौसेना का उपयोग हमारे खिलाफ भी हो सकता है, तो उन्होंने देश ही छोड़ दिया।
ऐसे समय में शिवाजी महाराज ने 300 सैनिकों की क्षमता वाले जहाज का निर्माण कराया और 300 टन सामान ले जाने वाले जहाजों का निर्माण भी कराया। इनकी देखभाल के लिए 3 स्तर पर अधिकारी नियुक्त होते और प्रत्येक 5 साल में उनका तबादला भी होता और यही व्यवस्था किले की भी होती थी। आशय स्पष्ट है कि कहीं भी, कभी भी विद्रोह का सवाल नहीं उठता।
शिवाजी महाराज से अंग्रेज कैप्टन कैंगविन जब अपनी सेना के साथ परास्त हो गए, तो उन्होंने लंदन लौटकर अपनी किताब में लिखा, कि हमारे पास मराठों जैसा अत्याधुनिक जहाज होता, तो हमारा पराभव नहीं होता। अपने शासनकाल में शिवाजी महाराज ने 18 कारखाने खोले और महलों का निर्माण भी कामकाज के लिए कराया, जो आज भी देखे जा सकते हैं। 1680 में शिवाजी महाराज की सेना का सालाना खर्च 2.5 करोड़ रुपए से अधिक था। इसके अलावा औरंगजेब जैसे मुगल आक्रांताओं से लड़ने के लिए उन्होंने करीब 7 लाख रुपए का अलग से प्रावधान किया हुआ था।
थोरात ने शिवाजी महाराज के साम्राज्य काल के दौरान कृषि विकास की जानकारी भी दी और बताया कि मुगल साम्राज्य में 50 प्रतिशत टैक्स किसानों को देना होता था, प्राकृतिक आपदा के समय भी उन्हें कोई छूट नहीं मिलती थी। इसके विपरीत मराठा साम्राज्य के समय 35 प्रतिशत कर देना पड़ता था, नई भूमि पर खेती करने पर 5 साल तक कर देने की छूट मिलती थी। प्राकृतिक आपदा के समय ना केवल कर माफ होता था, बल्कि बीज, खाद आदि की व्यवस्था भी मराठा साम्राज्य के द्वारा की जाती थी।
इससे किसानों में अपनी पुरानी खेती के साथ नई भूमि पर खेती करने की चाह बढ़ी। इससे स्वाभाविक तौर पर खेतिहर उपकरण की मांग बढ़ी। लोहारों को ज्यादा काम मिलने लगा। किसानों की आय बढ़ी, तो कपड़े की मांग बढ़ी, वहीं बुनकरों के साथ ही दर्जियों का काम भी बढ़ता गया। बाजार में संपन्नता नजर आने लगी। यह बात दूरदराज के इलाकों में भी फैली हुई थी और वहां के किसान व आम लोग भी चाहती थी कि शिवाजी महाराज उनके इलाकों को युद्ध से जीते और मराठा साम्राज्य की व्यवस्था यहां भी लागू करे।
इसी तरह पुर्तगिज नमक की क्वालिटी बहुत अच्छी होती और कीमत बहुत कम थी, इसके विपरीत स्वदेशी नमक हल्की क्वालिटी के बावजूद बहुत महंगा होता था। शिवाजी महाराज ने पुर्तगिज नमक पर इतना अधिक ऑक्ट्राय लगाया कि स्वदेशी नमक सस्ता लगने लगा और उसकी मांग भी बढ़ी। शिवाजी महाराज को जब पता लगा कि गोवा में हिन्दुओं पर अत्याचार बढ़ गया है, धर्मान्तरण तेजी से हो रहा है, तब उन्होंने वहां का दौरा किया और वहां के प्रशासन सहित पादरियों को समझाया। लेकिन जब उन तक दोबारा इसी तरह की शिकायत पहुंची और यह भी बताया कि सप्तकोटेश्वर मंदिर को क्षति पहुंचाई गई है, तो उन्होंने वहां हमला किया और धर्मांतरण में लगे चारों पादरियों को मारकर सप्तकोटेश्वर मंदिर का पुनर्निमाण कराया। इसी काल में उन्होंने श्रीशैलम मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया।
युद्ध के समय मुगल सैनिक दिनभर में 30 किमी का सफर तय कर पाते, तो वहीं शिवाजी महाराज अपने सैनिकों के साथ 50 से 60 किमी तक आगे बढ़ जाते। इससे उनकी रफ्तार का अनुमान लगाया जा सकता है। मुगल शासक 1200 से 1500 किमी का सफर कर महाराष्ट्र पहुंचते, तब तक शिवाजी महाराज युद्ध की अनेक रणनीतियां बना चुके होते। यही कारण है कि औरंगजेब जैसा लगभग 5 लाख सैनिकों के साथ चलने वाला आक्रांता कभी पूरे महाराष्ट्र को नहीं जीत पाया। इसके आगे दक्षिण क्षेत्र में बढ़ने का तो सवाल ही नहीं था।
महाराष्ट्र में जब भी मुगल सेना पहुंचती, शिवाजी महाराज के सैनिक उनकी सप्लाई चेन को बाधित कर देते थे। जबकि औरंगजेब के किले चारों ओर से घेरेबंदी के बावजूद किले के अंदर शिवाजी महाराज की सप्लाई चेन कभी पकड़ी नहीं गई। इससे उनके खुफिया तंत्र की क्षमता का पता चलता है।
निष्कर्ष स्वरूप सुधरी श्रीरंग थोरात ने कहा कि शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक से पूरे देश में यह संदेश गया कि कोई हिन्दू भी राजा हो सकता है। सफल रणनीति के साथ कालचक्र को भी उल्टा किया जा सकता है। असंभव से लगने वाले लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। बड़े से बड़े संकट का सफलता से सामना करते हुए उसे अवसर में बदला जा सकता है। युद्ध कौशल से दुश्मन को बारबार भ्रमित किया जा सकता है, सभी मोर्चों पर सक्रियता का दिखावा कर एक लड़ाई का लक्ष्य तय किया जा सकता है।
इससे पहले मंडल अध्यक्ष अजय काले ने थोरात के समक्ष मंडल की जानकारी रखी और बताया कि छत्तीसगढ़ की राजधानी में महाराष्ट्र मंडल विगत 88 वर्षों से सामाजिक गतिविधियों के साथ ही सांस्कृतिक और शैक्षणिक जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करता आ रहा है। उन्होंने महाराष्ट्र मंडल द्वारा संचालित दिव्यांग बालिका गृह को लेकर बताया कि यहां पर बालिका की शिक्षा से लेकर उनके जीवन निर्वाह और घर बसाने तक की सुविधा है। कार्यक्रम का संचालन महाराष्ट्र मंडळ के सहसचिव सुकृत गनौदवाले ने और आभार प्रदर्शन युवा मराठा समाज के अध्यक्ष लोकेश पवार ने किया।