रानी अहिल्या बाई की शौर्य गाथा हमें देती है धर्म और न्याय का संदेश
- अवंती विहार और डंगनिया महिला केंद्र में हुआ भजन संध्या का आयोजन
रायपुर। अहिल्या बाई होलकर एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्होंनें भारत के अलग-अलग राज्यों में मानवता की भलाई के लिए अनेक कार्य किए थे। उनकी शौर्य गाथा हमें अपनी जीवन और धर्म और न्याय का संदेश देती है। आज पूरे देश उनकी जयंती के 300 वर्ष पूरे होने पर त्रिशताब्दी समारोह मना रहा है। देश भर में आयोजन किए जा रहे है। इसी कड़ी में महाराष्ट्र मंडल रायपुर के अवंती विहार और डंगनिया महिला केंद्र की महिलाओं द्वारा नवरात्र पर भजन संध्या के साथ अहिल्या बाई होल्कर त्रिशताब्दी समारोह का आयोजन किया गया।
अवंती विहार महिला केंद्र की संयोजिता जागृति भाखरे ने बताया कि नवरात्र के अवसर पर शाम को केंद्र की महिलाओं द्वारा देवी भजन का आयोजन किया गया, साथ ही देवी स्वरूपा रानी अहिल्या बाई होल्कर का त्रिशताब्दी समारोह भी मनाया गया। कार्यक्रम में विशेष रुप में महाराष्ट्र मंडल की महिला प्रमुख विखाशा तोपखानेवाले उपस्थित रहीं। उन्होंने केंद्र की महिलाओं को रानी अहिल्या बाई होल्कर की शौर्य गाथा सुनाई।
विशाखा तोपखानेवाले ने कहा कि 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी ग्राम में हुआ इनका जन्म हुआ था। वर्ष 2024 को पूरे देश उनकी 300वीं जंयती पर शताब्दी समारोह मना रहा है। रानी अहिल्या बाई न्याय करते समय अपने पराये में जरा भी भेद नहीं करती थी। व्यक्ति से लेकर पशुओं तक के दर्द को समझती थी, एक बार क्रूरता के मामले में बेटे के दोषी पाये जाने पर अहिल्याबाई होलकर अपने ही बेटे को रथ के नीचे कुचलकर मारने के लिए निकल गई।
डंगनिया केंद्र में आयोजित भजन संध्या के दौरान कामकाजी महिला वसती गृह प्रभारी नमिता शेष ने अहिल्या बाई होल्कर की वीर गाथा को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर भगवान में विश्वास रखने वाली औरत थी और वह प्रतिदिन शिवजी के मंदिर पूजन आदि करने आती थी। उन्होंने कई तीर्थ स्थानों के साथ ही कई मंदिर, घाट, कुएं, बावडियों, भूखे लोगों के लिए अन्नसत्र और प्याऊ का निर्माण भी कराया।
अहिल्याबाई के मराठा प्रांत का शासन संभालने से पहले यह कानून था कि, अगर कोई महिला विधवा हो जाए और उसका पुत्र न हो, तो उसकी पूरी संपत्ति सरकारी खजाना या फिर राजकोष में जमा कर दी जाती थी, लेकिन अहिल्याबाई ने इस कानून को बदलकर विधवा महिला को अपनी पति की संपत्ति लेने का हकदार बनाया। इसके अलावा उन्होंने महिला शिक्षा पर भी खासा जोर दिया। अहिल्याबाई महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।