लेखकः परितोष डोनगांवकर
वर्ष 1975 मे प्रदर्शित फिल्म दीवार, जिसमें सामाजिक- राजनीतिक उथल-पुथल के समय में भाग्य और परिस्थितियों के कारण दो भाइयों अमिताभ बच्चन (विजय) और शशि कपूर (रवि) के बीच खड़ी हुई थी, लेकिन आज मैं लगभग 50 वर्ष पुराने सुपरहिट चलचित्र दीवार की समीक्षा नहीं करूंगा। इस लेख के माध्यम से मैं एक ऐसी दीवार के बारे में बात कर रहा हूँ, जो स्टंप और बॉल के बीच दीवार बनकर खड़ा रहता था, उसे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता था कि वो एशिया के धीमे विकेट पर खेल रहा है या ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड या दक्षिण अफ्रीका जैसे तेज और बाउंसी विकेट पर।
जी हाँ बात हो रही है राहुल द्रविड़ की, जो क्रिकेट की दुनिया में सबसे सम्मानित शख्सियतों में से एक हैं और अपनी असाधारण तकनीक, अनुशासन और खेल कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके शांत आचरण और समर्पण के कारण उन्हें 'द वॉल' के नाम से ख्याति मिली। इस दीवार का जन्म इंदौर, मध्यप्रदेश के मध्यम वर्गीय परिवार में 11 जनवरी 1973 को हुआ। राहुल द्रविड़ कर्नाटक के बैंगलोर (अब बेंगलुरु) में पले-बढ़े। उनके पिता जैम और प्रिजर्व के लिए प्रसिद्ध कंपनी किसान के लिए काम करते थे, जिसके कारण उनको बचपन से "जैमी" के नाम से भी संबोधित किया जाने लगा।
छोटी उम्र से ही क्रिकेट में रुचि होने के कारण उन्हें अंडर-15, अंडर-17 और अंडर-19 टीमों में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला, जिससे शुरुआती अनुभव ने उनके भविष्य की नींव रखी। द्रविड़ ने 1991- 92 सीज़न में कर्नाटक के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया और जल्द ही खुद को एक विश्वसनीय बल्लेबाज के रूप में स्थापित कर लिया।
उनका अंतरराष्ट्रीय टेस्ट परदार्पण भारत के इंग्लैंड दौरे में 20 जून 1996 को लॉर्ड्स में हुआ। इसमें उन्होंने पहली पारी में ही 95 रन की मजबूत पारी खेली और केवल पांच रन से शतक बनाने से चूक गए। इस मैच की विशेष बात यह थी कि उस दशक के ऑफ साइड के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी और टीम इंडिया के सबसे सफलतम कप्तानों में से एक दादा (सौरव गांगुली) का भी यह टेस्ट परदार्पण मैच था, जिसमें उन्होंने शानदार शतक लगाया।
द्रविड़ अपनी ठोस, रक्षात्मक, धैर्य और तकनीकी बल्लेबाजी शैली के लिए जाने गए। दबाव में लंबी पारी खेलने की उनकी क्षमता ने उन्हें भारतीय बल्लेबाजी लाइनअप की रीढ़ बना दिया। उनकी सबसे प्रसिद्ध साझेदारियों में से एक 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोलकाता टेस्ट के दौरान वीवीएस लक्ष्मण (281) के साथ थी, जहां उन्होंने भारत की ऐतिहासिक जीत में 180 रन बनाए। इस मैच में ऑस्ट्रेलिया ने टीम इंडिया को फॉलोऑन दिया उसके बाद ऐसा हुआ जिसे स्टीव वॉ (तत्कालीन क्रिकेट ऑस्ट्रेलियाई कप्तान) ने सपने में भी नहीं सोच था। राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ने इस मैच के चौथे दिन बिना कोई विकेट खोए ऑस्ट्रेलिया टीम को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और इस ऐतिहासिक टेस्ट मैच को 171 रन से जीत लिया। इस मैच में भज्जी (हरभजन सिंह) की भूमिका को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस मैच के बाद स्टीव वॉ ने अपने करियर में फिर कभी भी किसी टीम को फॉलोऑन नहीं दिया।
द्रविड़ सभी टेस्ट खेलने वाले देशों में शतक बनाने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने 2005 से 2007 तक भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में कार्य किया और 2007 में भारत को इंग्लैंड में प्रसिद्ध टेस्ट श्रृंखला में जीत दिलाई। हालाँकि उन्होंने भारत को कुछ उल्लेखनीय जीतें दिलाईं, लेकिन उनका कप्तानी कार्यकाल भी चुनौतियों से भरा रहा। इसमें 2007 विश्व कप से भारत और पाकिस्तान पहले ही राउंड में बाहर हो गए। इससे यह विश्वकप 1975 से 2023 तक के सभी विश्वकप का सबसे फ्लॉप विश्वकप साबित हुआ।
वर्ष 2012 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद द्रविड़ ने खेल में अपनी भागीदारी जारी रखी और भारत की अंडर-19 और भारत ए टीमों के लिए कोच के रूप में काम किया। उनके मार्गदर्शन में भारत की अंडर-19 टीम ने 2018 आईसीसी अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप जीता। नवंबर 2021 में राहुल द्रविड़ को रवि शास्त्री के स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम का मुख्य कोच नियुक्त किया गया। द्रविड़ को अपने पूरे करियर में कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें पद्मश्री (2004), पद्म भूषण (2013), वर्ष 2018 में ICC क्रिकेट हॉल ऑफ फेम में शामिल
आईसीसी क्रिकेटर ऑफ द ईयर (2004) के लिए सर गारफील्ड सोबर्स ट्रॉफी, आईसीसी टेस्ट प्लेयर ऑफ द ईयर (2004), द विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर (2000) शामिल हैं।
मैदान के बाहर द्रविड़ को उनकी विनम्रता, कार्य नीति और खेल कौशल के लिए सराहा जाता है, जो उनके पूरे करियर में क्रिकेट (A Gentleman Game) की खेल भावना को दर्शाता है। द्रविड अपने करियर में कभी भी विवादों मे नहीं घिरे, लेकिन 2004 में पाकिस्तान के खिलाफ मुल्तान टेस्ट मैच में राहुल द्रविड़ ने कार्यवाहक कप्तान के रूप में उस समय पारी घोषित कर दी जब सचिन तेंदुलकर 194* रन पर क्रीज पर थे और जो अपने दोहरे शतक से केवल 6 रन पीछे थे।
इस फैसले ने क्रिकेट जगत में हलचल मचा दी। अनेक सवाल उठाये गये कि द्रविड़ ने तेंदुलकर को दोहरा शतक पूरा करने के बजाय उसी समय पारी घोषित करने का फैसला क्यों किया।
बाद में तेंदुलकर ने स्वयं अपनी आत्मकथा "प्लेइंग इट माई वे" में उल्लेख किया कि वे वास्तव में इस निर्णय से निराश थे, क्योंकि वह एक व्यक्तिगत मील के पत्थर के करीब थे। हालांकि, तेंदुलकर ने यह भी स्पष्ट किया कि वह समझते हैं कि यह टीम के हित में लिया गया कप्तान का निर्णय था।
राहुल द्रविड़ की शादी विजेता पेंढारकर से हुई है, जो एक सर्जन हैं और उनके दो बेटे हैं, समित और अन्वय। बड़े बेटे समित अपने पिता राहुल द्रविड की क्रिकेट के प्रति सपर्पण की परंपरा को बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं और हम आशा करते हैं कि शीघ्र ही राहुल द्रविड 2.0 की प्रतिभा का प्रदर्शन पूरे विश्व को देखने को मिले। द्रविड़ की स्वच्छ छवि और समर्पण ने उन्हें उभरते क्रिकेटरों के लिए एक आदर्श बना दिया है। एक तकनीकी बल्लेबाज के रूप में राहुल द्रविड़ की प्रतिभा उन्हें क्रिकेट में एक महान शख्सियत बनाती है। अगली पीढ़ी के खिलाड़ियों पर उनका प्रभाव और एक स्थिर और शांत मेंटर के रूप में उनकी प्रतिष्ठा महान अवसर प्रदान करती है। हालाँकि आधुनिक क्रिकेट की माँगों को उसके पारंपरिक रुढ़िवादी दृष्टिकोण के साथ संतुलित करना निरंतर चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। लेकिन टेस्ट क्रिकेट को अगले कई वर्षों तक जीवित रखने के लिए आगामी पीढ़ी को इनका मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक है।
राहुल द्रविड़ के करियर को प्रबंधन की दृष्टि से देखा जाये, तो बहुत कुछ सिखने का मौका मिलता है। राहुल द्रविड़ के करियर का SWOT विश्लेषण निम्नानुसार है।
विशेषता:-
1.तकनीकी विशेषज्ञता: द्रविड़ को क्रिकेट इतिहास में तकनीकी रूप से सबसे अच्छे बल्लेबाजों में से एक माना जाता है। चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में खेलने की उनकी क्षमता ने उन्हें भारत के लिए अपरिहार्य बना दिया, विशेषकर टेस्ट क्रिकेट में।
2. लचीलापन और धैर्य: अपने धैर्य के लिए जाने जाने वाले द्रविड़ लंबी पारियां खेल सकते थे, दबाव झेल सकते थे और गेंदबाजों को परेशान कर सकते थे। लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने की उनकी क्षमता ने उन्हें टेस्ट मैचों में सफल होने में मदद की।
3. नेतृत्व गुण: द्रविड़ ने भारत की सफलतापूर्वक कप्तानी की और वह अपने शांत, संयमित नेतृत्व के लिए जाने जाते थे। एक कोच के रूप में, उन्होंने कौशल विकास और अनुशासन पर जोर देते हुए विशेष रूप से भारत ए और अंडर-19 टीम के साथ युवा प्रतिभाओं का मार्गदर्शन किया है।
4. बहुमुखी प्रतिभा: मुख्य रूप से एक टेस्ट खिलाड़ी रहते हुए, द्रविड़ ने अपने खेल को एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय (वनडे) में भी अपनाया, यहां तक कि टीम की संरचना को संतुलित करने के लिए कुछ समय के लिए विकेटकीपर के रूप में भी खेला।
5. मेंटरशिप कौशल: युवा क्रिकेटरों के साथ द्रविड़ का काम विशेष रूप से भारत की अंडर-19 और भारत ए टीमों के कोच के रूप में, व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। उनके शांत और व्यवस्थित दृष्टिकोण ने भारतीय क्रिकेटरों की एक नई पीढ़ी को आकार दिया है।
कमजोरियां:-
1. छोटे प्रारूपों में सीमित आक्रामकता: जबकि द्रविड़ टेस्ट क्रिकेट में एक किंवदंती हैं, उनकी स्ट्राइक रेट और सीमित ओवरों के क्रिकेट में तेजी लाने की क्षमता पर कभी-कभी सवाल उठाए जाते थे। उन्हें टी-20 प्रारूप के लिए स्वाभाविक रूप से उपयुक्त नहीं माना गया था।
2. रुढ़िवादी दृष्टिकोण: द्रविड़ के सतर्क, व्यवस्थित दृष्टिकोण ने टेस्ट में अच्छा काम किया, लेकिन कभी- कभी इसे बहुत अधिक रूढ़िवादी के रूप में देखा जा सकता है, खासकर उन स्थितियों में जहां अधिक आक्रामक रणनीति की आवश्यकता होती है।
3. अंतरराष्ट्रीय कोच के रूप में सीमित सफलता: हालांकि युवा टीमों के साथ उनके काम के लिए द्रविड़ की प्रशंसा की गई है, लेकिन सीनियर भारतीय टीम के मुख्य कोच के रूप में उनके शुरुआती कार्यकाल में मिश्रित परिणाम देखने को मिले, कभी-कभी कुछ मैच में स्थितियों या चयन विकल्पों को संभालने के बारे में उनकी आलोचना भी हुई।
अवसर:-
1. कोचिंग और प्रतिभा विकास: द्रविड़ ने पहले ही जूनियर स्तर पर एक कोच के रूप में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। सीनियर टीम की कोचिंग में उनका परिवर्तन भारत के भविष्य के क्रिकेट सितारों को ढालने का अवसर प्रदान करता है। वह आईसीसी ट्रॉफियों की खोज में भारत का नेतृत्व करने के लिए अच्छी स्थिति में हैं।
2. वैश्विक प्रभाव: खेल के बारे में अपने विशाल ज्ञान और सम्मानित अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के साथ द्रविड़ वैश्विक क्रिकेट प्रशासन, कोचिंग या परामर्श कार्यक्रमों में एक बड़ा प्रभाव बन सकते हैं।
3. क्रिकेट से परे विस्तार: द्रविड़ का अनुशासित और नैतिक दृष्टिकोण उन्हें क्रिकेट के मैदान से परे की भूमिकाओं में भी ले जा सकता है, जैसे प्रेरक भाषण या खेल प्रशासन या शिक्षा में नेतृत्व की स्थिति।
डर (थ्रेट्स):-
1. बड़ी उम्मीदें: द्रविड़ की बहुत प्रतिष्ठा है, और चाहे एक खिलाड़ी कप्तान या कोच के रूप में, उनसे उम्मीदें हमेशा ऊंची रहती हैं। इन अपेक्षाओं को पूरा करने में विफलता से जांच हो सकती है, खासकर भारतीय क्रिकेट की उच्च दबाव वाली दुनिया में।
2. आधुनिक क्रिकेट में बदलती गतिशीलता: टी20 क्रिकेट पर बढ़ते जोर और आक्रामक नवीन खेल शैलियों की मांग के साथ द्रविड़ के पारंपरिक, व्यवस्थित दृष्टिकोण को आधुनिक खेल के साथ कम संगत के रूप में देखा जा सकता है।
3. प्रतिस्पर्धी युग में आलोचना: भारतीय क्रिकेट उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां तत्काल सफलता की उम्मीद है, खासकर आईसीसी टूर्नामेंटों में। बड़े खिताब हासिल करने में विफलता उनकी कोचिंग रणनीतियों की आलोचना को आमंत्रित कर सकती है।
निष्कर्ष:-
एक तकनीकी बल्लेबाज और मेंटर के रूप में राहुल द्रविड़ की ताकत उन्हें क्रिकेट में एक महान शख्सियत बनाती है। अगली पीढ़ी के खिलाड़ियों पर उनका प्रभाव और एक स्थिर, शांत मेंटर के रूप में उनकी प्रतिष्ठा महान अवसर प्रदान करती है। हालांकि, आधुनिक क्रिकेट की मांगों को उसके पारंपरिक, रुढ़िवादी दृष्टिकोण के साथ संतुलित करना निरंतर चुनौतियों भरा रहेगा।
(संकलनकर्ता सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विगत 22 वर्षों से छत्तीसगढ़ शासन एवं केंद्र सरकार की विभिन्न परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।)