महादेवघाट का रिनोवेशन मेरी लाइफ का टर्निंग प्वाइंटः सौरभ
2025-02-13 08:27 PM
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0- बचपन से स्क्रैचिंग में रुचि देखकर. मां ने दिखाई राह
रायपुर। प्रतिष्ठित वास्तुविद सौरभ राहटगांवकर ने बताया कि वर्ष 2004 में महादेव घाट रायपुर का रिनोवेशन करने के लिए बड़े आर्किटेक्चर के बीच उन्होंने भी अपना भाग्य आजमाया। उस खुली स्पर्धा में प्रेजेंटेशन सभी को पसंद आया और मैं उस प्रतियोगिता में विजेता रहा। यही मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। वे फेसबुक चैनल पर चर्चा कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि साल 2003 में रायपुर में काम शुरू करने के दौरान उनकी मुलाकात बरखा से हुई। अब वो उनकी पत्नी है, लेकिन उस समय उनकी शादी नहीं हुई थी। बरखा और उन्होंने मिलकर उस समय कंप्यूटर खरीदा और काम शुरू किया। सौरभ ने कहा कि सरकारी बड़े प्रोजेक्ट के साथ टाउनशिप, अपार्टमेंट के साथ उन्होंने छोटे घरों के लिए प्लान तैयार किया। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। उन्होंने जितनी तन्मयता से बड़े प्रोजेक्टों को पूरा किया है, उतने ही लगन से छोटे प्रोजेक्ट पर भी काम किया। उनका सबसे छोटा प्रोजेक्ट 20 बाई 40 वर्गफीट के मकान का निर्माण है।
मध्यम वर्गीय परिवार ने जन्मे सौरभ राहटगांवकर आज राजधानी में आर्किटेक्चर फील्ड में काफी चर्चित नाम है। वास्तुविद और आर्किटेक्चर सौरभ के परिवार में इस क्षेत्र में कोई नहीं था। बचपन से ड्राइंग और स्क्रैचिंग के प्रति रुचि ने उन्हें आज इस फील्ड का एक्सपर्ट बना दिया। बचपन में उनकी इन्हीं रुचि को पहचान कर मां ने आर्किटेक्चर के फील्ड में कैरियर बनाने की राह दिखाई। मां के दिखाए राह पर चलते हुए जीवन में सबसे बड़ा सपोर्ट उनकी पत्नी बऱखा का मिला। जीवन के हर छोटे- बड़े, सही गलत फैसलों के बीच खुशी में बरखा ने साथ दिया। वहीं गलत फैसलों के बाद टूटने पर साहस भी बंधाया।
सौरभ ने बताया कि आर्किटेक्चर की पढ़ाई के बाद नागपुर में सांलकर के यहां इंटर्नशिप किया। आज इंटर्नशिप करने वाले पहले स्टाइफन और टाइमिंग पूछते हैं। उन्होंने जब इंटर्नशिप की, तो दोनों ही चीजें नहीं पूछी। सुबह 10.30 आफिस खुलता लेकिन वे अपने उत्साह के साथ सुबह 9.30 पहुंच जाते थे। आफिस बंद होने तक मन लगाकर काम करते थे। इंटर्नशिप खत्म होने के बाद जब वे घर जाने लगे, तो सालंकर सर ने पूछा कि घर जा रहे हो तो कुछ चाहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ सर्टिफिकेट चाहिए। सालंकर सर ने पूछा कि तुमने उनसे स्टाइफंड क्यों नहीं मांगा। उन्होंने 2500 रुपये प्रति महीने के हिसाब से उन्हें छह माह का स्टाइफंड दिया। वहीं उनकी रायपुर में पहली सैलरी का आधार बनीं और उन्हें ढाई हजार रुपये प्रतिमाह का जाब मिला।
राहटगांवकर ने बताया कि वित्त मंत्री ओपी चौधरी वर्ष 2013 में रायपुर नगर निगम आयुक्त हुआ करते थे। उस समय उनके साथ उन्होंने कई सरकारी प्रोजेक्ट में काम किया। ओपी चौधरी जब दंतेवाड़ा पहुंचे, तो उन्होंने वहां भी काम किया। बीजापुर में उन्होंने आॅडिटोरियम बनाया। उस दौरान रायपुर से छह घंटे का सफर तय कर जगदलपुर और फिर छह घंटे का सफर कर बीजापुर पहुंच कर वहां आॅडिटोरियम का काम करवाया। सच में बड़ा टास्क था। आइनाॅक्स और पीवीआर जैसी सुविधाओं वाला आडिटोरियम तैयार किया।
सौरभ के अनुसार जब उन्होंने काम शुरू किया, तब सोशल मीडिया का जमाना नहीं था। ऐसे में अपने काम को जन-जन पहुंचाने का काम माउथ पब्लिसिटी से हुआ करता था। माउथ पब्लिसिटी उसी की होती, जिसका काम अच्छा होता। उन्होंने सिर्फ काम पर फोकस किया। कभी तामझाम और शान-ओ-शौकत पर फोकस नहीं किया। इसके कारण धीरे- धीरे वे रायपुर ही नहीं पूरे देश में नाम कमाने में सफल रहे। रायपुर को नई पहचान देने वाले सुप्रसिद्ध वरिष्ठ वास्तुविद टीएम घाटे हमेशा से ही उनके प्रेरणस्तोत्र रहे हैं। वे आज भी उन्हें फाॅओ कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उन्हें व्यवसायिक, सरकारी और निजी प्रोजेक्ट में काम करने से ज्यादा आनंद सामाजिक प्रोजेक्ट में आता है। क्योंकि सामाजिक प्रोजेक्ट में आपका विजन पूरे समाज के लाभ के लिए होता है। फिर जनसेवा भी होती है। हाल ही में उन्होंने चौबे काॅलोनी स्थित महाराष्ट्र मंडल के नए भव्य भवन का कार्य पूरा किया। वर्ष 2017 में मंडल अध्यक्ष अजय मधुकर काले ने नए भवन की परिकल्पना की। मंडल की पूरी कार्यकारिणी ने उनका सहयोग किया।
सौरभ ने कहा कि उन्होंने बिना फीस लिए उस भवन के लिए कार्य किया। लोगों के मन में यह धारणा है कि मराठी लोग थोड़े कंजूस होते है। उन्होंने इस स्थापित अवधारणा को महाराष्ट्र मंडल का नया, भव्य, खूबसूरत, अत्याधुनिक, सर्व सुविधायुक्त भवन बनाकर तोड़ दिया है। आप भी महाराष्ट्र मंडल आकर देखिए। लोगों के सहयोग से शहर के बीच मध्यम वर्गीय परिवार के लिए नौ करोड़ रुपये की लागत से बने इस भवन में आमजनों और समाजिक संगठनों को कम बजट पर बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।