वैज्ञानिक डॉ. जयंत नार्लीकर को महाराष्ट्र मंडल ने दी श्रद्धांजलि
2025-05-20 09:30 PM
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0- 87 वर्षीय प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक, विज्ञान संचारक पद्म विभूषण डॉ. नार्लीकर ने मंगलवार की सुबह पुणे में ली अंतिम सांस
रायपुर। प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक, विज्ञान संचारक और पद्म विभूषण डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर को मंगलवार की शाम को महाराष्ट्र मंडल में भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। डॉ. नार्लीकर युवाओं को प्रेरित और उत्साहित करने वाले मंडल के विद्यार्थी सम्मान में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होकर प्रतिभाशाली छात्र- छात्राओं को मार्गदर्शन दे चुके हैं। वे महाराष्ट्र मंडल के प्रकल्पों और कार्यकलापों से प्रभावित थे।
श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए अध्यक्ष अजय काले ने कहा कि नौवें दशक में महाराष्ट्र मंडल के भालेराव विद्यार्थी सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. नार्लीकर ने युवाओं की शैक्षणिक उपलब्धियों पर संतोष जाहिर करते हुए कहा कि अपनी रुचि का लक्ष्य निर्धारित करो और उसे हासिल करने के लिए जी तोड़ मेहनत करो। जिंदगी में मेहनत का कोई विकल्प या शार्टकट नहीं होता। उन्होंने युवाओं से जोर देकर कहा था कि जब भी आपका ध्यान फोकस से हटेगा तो फिर आप अपने तय लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे और अपेक्षित सफलता से वंचित हो जाएंगे।
महाराष्ट्र मंडल के आयोजित श्रद्धांजलि सभा में उपाध्यक्ष गीता दलाल, सचिव चेतन गोविंद दंडवते, मुख्य समन्वयक श्याम सुंदर खंगन, महिला प्रमुख विशाखा तोपखानेवाले, मेस प्रभारी दीपक किरवईवाले, सखी निवास प्रभारी नमिता शेष, संत ज्ञानेश्वर स्कूल के प्रभारी परितोष डोनगांवकर, शंकर नगर बाल वाचनालय प्रभारी रेणुका पुराणिक, वरिष्ठ रंग साधक अनिल श्रीराम कालेले, वरिष्ठ जन सेवा समिति के प्रमुख दीपक पात्रीकर, अरविंद जोशी, अतुल गद्रे, साक्षी टोले, सृष्टि दंडवते, कल्पना किरवईवाले, रचना ठेंगड़ी, अंजलि काले, संध्या खंगन, अक्षता पंडित, अक्षय, अनय पंडित सहित अनेक पदाधिकारी व सभासद उपस्थित रहे।
बताते चलें कि डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का 87 वर्ष की आयु में मंगलवार को सुबह पुणे में निधन हो गया। उन्हें ब्रह्मांड विज्ञान में उनके अग्रणी योगदान, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के उनके प्रयासों और देश में प्रमुख अनुसंधान संस्थानों की स्थापना करने के लिए जाना जाता है। 19 जुलाई 1938 को जन्मे डॉ. नार्लीकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में ही पूरी की, जहां उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर प्रोफेसर और गणित विभाग के प्रमुख थे। इसके बाद वह उच्च अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज चले गए। यहां उन्हें ‘मैथेमैटिकल ट्रिपोस’ में ‘रैंगलर’ और ‘टायसन’ पदक मिला। वे भारत लौटकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (1972-1989) से जुड़ गए, जहां उनके प्रभार में सैद्धांतिक खगोल भौतिकी समूह का विस्तार हुआ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 1988 में प्रस्तावित अंतर-विश्वविद्यालय खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी केंद्र (आईयूसीएए) की स्थापना के लिए डॉ. नारलीकर को इसके संस्थापक निदेशक के रूप में आमंत्रित किया गया। वर्ष 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति तक वह आईयूसीएए के निदेशक रहे।